कबीरदास 15वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे, जिनका जन्म 1398 ई. में वाराणसी के लहरतारा तालाब के पास हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि वे एक कमल के फूल पर प्रकट हुए थे और उनका लालन-पालन नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने किया था। कबीरदास जी ने औपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त की, लेकिन उनके दोहों और साखियों में गहरी आध्यात्मिकता, समाज सुधार और मानवता का संदेश मिलता है। वे संत रामानंद के शिष्य बने और उनके विचारों से प्रभावित होकर निर्गुण भक्ति धारा को अपनाया। कबीरदास ने अपने समय के धार्मिक पाखंड, अंधविश्वास, जातिवाद और कर्मकांडों का कड़ा विरोध किया और एक परम सत्य, निराकार ईश्वर की उपासना का संदेश दिया।
कबीर का जीवन बेहद साधारण था। वे एक जुलाहा परिवार में पले-बढ़े और अपना जीवन यथार्थवादी विचारों के साथ व्यतीत किया। वे न हिंदू थे, न मुसलमान, बल्कि मानवता को ही सर्वोपरि मानते थे। उनकी वाणी इतनी प्रभावशाली थी कि वे हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में समान रूप से सम्मानित हुए। उनकी मृत्यु 1494 ई. में मगहर में हुई, जहाँ से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, उनकी पार्थिव देह फूलों में परिवर्तित हो गई, जिसे हिंदुओं और मुसलमानों ने अपने-अपने तरीकों से अंतिम संस्कार किया।
कबीरदास केवल संत ही नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी विचारक भी थे। उनके व्यक्तित्व की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं:
कबीरदास का साहित्य समाज सुधार और मानवता की सेवा का संदेश देता है। उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं:
बीजक – कबीरदास की वाणी का प्रमुख संकलन है, जिसे उनके शिष्यों ने संकलित किया था। इसमें तीन भाग हैं:
कबीर ग्रंथावली – इसमें कबीर के पद और दोहे संकलित हैं।
कबीर साखी – इसमें उनके शिक्षाप्रद और जीवन से जुड़े संदेश संकलित हैं।
कबीर दोहावली – इसमें उनके दोहे संकलित हैं, जो समाज सुधार और आध्यात्मिकता पर केंद्रित हैं।
कबीर शब्दावली – इसमें आत्मा और परमात्मा के ज्ञान को समझाने वाली वाणी है।
गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर के पद – कबीर की रचनाएँ सिख धर्म के गुरु ग्रंथ साहिब में भी सम्मिलित की गई हैं।
कबीरदास ने अपने साहित्य में गूढ़ आध्यात्मिकता को सहज भाषा में प्रस्तुत किया, जिससे उनकी वाणी आम जनता तक पहुँची। उनके दोहे आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं, जैसे:
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥”
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥”
इन दोहों से स्पष्ट होता है कि कबीरदास केवल ज्ञान की बात ही नहीं करते थे, बल्कि उन्होंने जीवन के अनुभवों को सरल शब्दों में व्यक्त किया।
कबीरदास एक अद्वितीय संत और समाज सुधारक थे, जिन्होंने अपने काव्य के माध्यम से न केवल भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी, बल्कि समाज में फैली कुरीतियों और धार्मिक पाखंडों पर भी कठोर प्रहार किया। उनकी निर्भीकता, सत्य के प्रति प्रतिबद्धता, सरल भाषा और आध्यात्मिक गहराई ने उन्हें युगों-युगों तक अमर बना दिया। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने 15वीं सदी में थे। उनके दोहे और रचनाएँ हमें प्रेम, सत्य, सहिष्णुता और आत्मज्ञान का संदेश देती हैं, जो हर युग में मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।
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