आचार्य रामचंद्र शुक्ल

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के एक प्रमुख आलोचक, इतिहासकार और विचारक थे, जिनका जन्म 1 अक्टूबर 1884 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगौना गाँव में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा मिर्जापुर में हुई और बाद में उन्होंने प्रयाग की कायस्थ पाठशाला से इंटर की पढ़ाई पूरी की। स्वाध्याय के माध्यम से उन्होंने उर्दू, अँग्रेज़ी, बांग्ला और हिंदी भाषा का गहन अध्ययन किया।

मिर्जापुर में रहते हुए वह भारतेंदु युग के साहित्यकार चौधरी बदरीनारायण प्रेमघन के संपर्क में आए, जिनके साथ उन्होंने ‘आनंद कादंबिनी’ पत्रिका के संपादन में सहयोग किया। यही वह समय था जब उनकी साहित्य में रुचि और गहरी हो गई और उन्होंने ब्रज भाषा और खड़ी बोली में कविता-लेखन शुरू किया। उनका प्रसिद्ध निबंध ‘कविता क्या है’ और कहानी ‘ग्यारह वर्ष का समय’ इसी दौर में प्रकाशित हुए।

1908 में वह काशी आए और यहाँ काशी नागरी प्रचारिणी सभा के ‘हिंदी शब्द सागर’ के संपादन कार्य से जुड़े। उन्होंने इस परियोजना के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और इसी के आधार पर उन्होंने बाद में हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा। 1919 में उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रध्यापक के रूप में अपनी सेवाएँ दीं और 1937 में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने।

आचार्य शुक्ल ने हिंदी साहित्य को एक व्यवस्थित ढाँचा प्रदान किया। उन्होंने ‘सूरसागर’ के भ्रमरगीत प्रसंग और ‘जायसी ग्रंथावली’ का संपादन किया। उनके आलोचनात्मक कार्यों में ‘रस मीमांसा’ और ‘चिंतामणि’ प्रमुख हैं, जिनमें उन्होंने साहित्यिक सिद्धांतों का विश्लेषण किया और हिंदी आलोचना को संस्कृत काव्यशास्त्र के प्रभाव से मुक्त करने का प्रयास किया।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल को हिंदी आलोचना के क्षेत्र में वही स्थान प्राप्त है, जो प्रेमचंद को उपन्यास और निराला को कविता में मिला। उनका साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य को एक नई दिशा देने में मील का पत्थर साबित हुआ।

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