छायावाद की परिभाषाएँ
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हिंदी कविता के क्षेत्र में ‘भक्तिकाल’ के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध शब्द अगर कोई है तो वह है ‘छायावाद’ और आज की कविता के अनेक वादों में से सबसे अधिक विवादित वाद भी ‘छायावाद’ ही है। यह सच है कि ‘छायावाद’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले मुकुटधर पांडे ने ‘श्री शारदा’ नामक पत्रिका के 1920 ई. के चार अंकों में ‘हिंदी में छायावाद’ शीर्षक पर व्यंग्यात्मक लेख लिखकर विस्तृत और गहन विवेचन प्रस्तुत किया था और यहीं से ‘छायावाद’ आज तक साहित्य जगत में एक बड़ा चर्चा का विषय बना हुआ है। तभी तो इतने वर्षों के व्यतीत हो जाने के बाद भी साहित्य का जिज्ञासु यह समझने के लिए कितना उत्सुक नजर आता है की छायावाद क्या है ? विद्वानों ने ‘छायावाद’ को विभिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित करने का प्रयास किया है, जिसमें से कुछ छायावाद की परिभाषाएँ इस प्रकार हैं:
‘छायावाद’ की परिभाषाएँ :
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने छायावाद को स्पष्ट करते हुए लिखा है -“छायावाद एक शैली विशेष है, जो लाक्षणिक प्रयोगों, अप्रस्तुत विधानों और अमूर्त उपमानों को लेकर चलती है।”
- महादेवी वर्मा “छायावाद प्रकृति के बीच जीवन का उद्-गीथ है।”
- डॉ. राम कुमार वर्मा ने छायावाद और रहस्यवाद में कोई अंतर नहीं माना है। छायावाद के विषय में उनके शब्द हैं- “आत्मा और परमात्मा का गुप्त वाग्विलास रहस्यवाद है और वही छायावाद है।” या “परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा पर। यही छायावाद है।”
- जयशंकर प्रसाद ने छायावाद को अपने ढ़ग से परिभाषित करते हुए कहा है – “कविता के क्षेत्र में पौराणिक युग की किसी घटना अथवा देश-विदेश की सुंदरी के बाह्य वर्णन से भिन्न जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगी तब हिंदी में उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया।”
- डॉ. देवराज छायावाद गीतिकाव्य है, प्रकृति काव्य है और प्रेम काव्य है। आधुनिक हिंदी साहित्य में यह एक महान आंदोलन के रूप में आया।
- पंडित नन्ददुलारे वाजपेयी : ‘मानव तथा प्रकृति के सुक्ष्म किन्तु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाया का भाव छायावाद है।’
- गंगा प्रसाद पाण्डेय “किसी वस्तु में एक अज्ञात, सप्राण छाया की झाँकी पाना अथवा आरोप करना छायावाद है।”
- गुलाबराय “प्रकृति को गोचरता की सीमा में बांधकर उसमें आत्मीयता स्थापन करने अथवा किसी वस्तु को उपयोगिता मात्र के दृष्टिकोण से न देखकर उसको भावुकता की कसौटी पर कसने की प्रवृत्ति को ही छायावाद कहते हैं।
- शांतिप्रिय द्विवेदी : “छायावाद एक दार्शनिक अनुभूति है।”
- डॉ. नामवर सिंह “छायावाद उस सामाजिक-सांस्कृतिकक जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति है जो एक और विदेशी पराधीनता से मुक्ति का स्वर लेकर आती है तो दूसरी ओर काव्यगत रूढ़ियों से।”
“छायावाद व्यक्तिवाद की कविता है, जिसका आरंभ व्यक्ति के महत्व को स्वीकार करने और करवाने से हुआ।” - हजारी प्रसाद द्विवेदी छायावाद एक विशाल सांस्कृतिक चेतना का परिणाम था। यह केवल पाश्चात्य प्रभाव नहीं था अपितु कवियों की भीतरी व्याकुलता ने ही नवीन भाषा-शैली में अपने को अभिव्यक्त किया।
- डॉ. नगेंद्र ने छायावाद को ”स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह” बताते हुए कहा है कि “युग की उद्बुद्ध चेतना ने बाह्य अभिव्यक्ति से निराश होकर जो आत्मबद्ध अन्तर्मुखी साधना आरंभ की वही काव्य में छायावाद है।”
- मुकुटधर पाण्डेय “यह कविता ना होकर कविता की छाया है। परमात्मा के प्रति प्रणय रहस्यवाद है ठीक उसी प्रकार प्रकृति के प्रति प्रणय छायावाद है।”
- डॉ रामविलास शर्मा ने कहा है कि “छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह नहीं रहा वरन् थोथी नैतिकता, रूढ़िवाद और सामंती साम्राज्यवादी बन्धनों के प्रति विद्रोह रहा है।”