विषय वस्तु की दृष्टि से अनुवाद दो प्रकार के होते हैं :
- साहित्यिक अनुवाद
- साहित्येतर अनुवाद
साहित्यिक अनुवाद
साहित्यिक अनुवाद में साहित्य जगत से जुड़ी विद्याओं का अनुवाद किया जाता है। इसके अंतर्गत प्रमुख रूप से काव्यानुवाद, कथा अनुवाद, नाट्यानुवाद, जीवनी, आत्मकथा जैसी सभी गद्य व पद्य रूपों का अनुवाद शामिल है।
साहित्येतर अनुवाद
साहित्येतर अनुवाद में साहित्य से अलग विषयों का अनुवाद किया जाता है। इसके अंतर्गत प्रमुख रूप से वाणिज्य अनुवाद, समाजशास्त्रीय विश्व का अनुवाद, वैज्ञानिक तकनीकी अनुवाद, संचार माध्यमों के लिए अनुवाद और प्रशासनिक एवं कानूनी दस्तावेजों के लिए किए गए अनुवाद आते हैं
इस आधार पर हम देख सकते हैं कि अनुवाद के दोनों ही रूपों में पर्याप्त अंतर दिखाई देता है। इसी अंतर को निम्ननलिखित बिंदुओं के माध्यम से और व्यापक स्तर पर भी समझा जा सकता है जैसे –
- साहित्यिक अनुवाद शैली प्रधान होते हैं जबकी साहित्येतर अनुवाद में शैली की प्रधानता न होकर विषय प्रधान होता है।
- साहित्यिक अनुवाद में शैली के साथ अभिव्यक्ति और भाव प्रमुख होते हैं जबकी साहित्येतर अनुवाद में विचार ही प्रमुख होते हैं।
- साहित्यिक अनुवाद में अनुभूति और रसात्मकता आवश्यक है पर साहित्येतर अनुवाद में पठनीयता और बोधगम्यता की ही आवश्यकता होती है ।
- साहित्यिक अनुवाद में विषयों का भावानुवाद ही अनिवार्य होता है लेकिन साहित्येतर अनुवाद में विषयों का शब्दानुवाद करना ही सही समझा जाता है।
- साहित्यिक अनुवाद में पुनःसर्जन जरूरी है लेकिन साहित्येतर अनुवाद में इसकी कोई जरूरत नहीं।
- साहित्यिक अनुवाद में अनुवादक का व्यक्तित्व परिलक्षित रहता है। लेकिन साहित्येतर अनुवाद में अनुवादक पूर्ण रूप से निर्वैयक्तिक होता है।
- साहित्यिक अनुवाद कलात्मक होने के साथ-साथ आलंकारिक भी होता है लेकिन साहित्येतर अनुवाद अलंकार विहीन होने के साथ साथ वस्तुनिष्ठ होते हैं।
- साहित्यिक अनुवाद में पारिभाषिक शब्द अनिवार्य नहीं है लेकिन साहित्येतर अनुवाद में पारिभाषिक शब्द अनिवार्य होते हैं।
- साहित्यिक अनुवाद में तीनों शब्द शक्तियों (अभिधा, लक्षणा, व्यंजन) का प्रयोग जरूरत के अनुसार अनुवादक कर सकता है। लेकिन साहित्येतर अनुवाद में अनुवादक अपनी बात अभिधा शब्दशक्ति में ही कहना उचित समझता है।
- साहित्यिक अनुवाद में भाषा आंचलिक या ग्रामीण क्षेत्रों की हो सकती है लेकिन साहित्येतर अनुवाद में इसकी छूट नहीं है क्योंकि वहाँ परिनिष्ठित भाषा का प्रयोग ही स्वीकार्य है।