अज्ञेय बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न और विद्रोही कलाकार हैं। इन्होंने सदैव परंपराओं के विद्रोह का स्वर ऊँचा किया हैं। शेखर एक जीवनी मनोवैज्ञानिकता के चित्रण पर आधारित हैं। वैसे भी अज्ञेय जी मनोवैज्ञानिक साहित्यकार माने जाते हैं। उनके साहित्य में मनोवैज्ञानिक चेतना के साथ-साथ जनवादी चेतना के स्वर मिलते हैं इसलिए वे मानव के अहं भाव एंव मानसिक तनाव जैसी प्रवृत्तियों का चित्रण सरलता से करते है।
‘शेखर एक जीवनी’ अज्ञेय की प्रथम किंतु निर्विवाद रूप से श्रेष्ठतम कृति है। इसे हम हिन्दी उपन्यास साहित्य की श्रेष्ठ कृतियों में से एक मान सकते है। ‘शेखर एक जीवनी’ की भूमिका में अज्ञेय ने अपने ‘विजन’ को स्पष्ट करने की दृष्टि में कहा है।
“मेरे कहने का अभिप्राय यह नहीं है कि इतना बड़ा पौधा मैंने एक रात में गढ़ डाला। शेखर एक जीवनी घनीभूत वेदना की एक रात में देखे गए ‘विजन’ को शब्दबद्ध करने का प्रयत्न है।” (1)
‘शेखर’ हिंदी का पहला मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास है। जिसमें आवश्यक कलात्मकता का निर्वाह करते हुए भी ‘मनोविश्लेषण’ की शास्त्रीय पद्धति का प्रयोग किया गया है।‘मनोविश्लेषण’ के अंतर्गत शिशु मानस तथा किशोर मन का विशेष महत्व है। अतएव शेेखर की मुख्य कथा ‘शेखर’ के शिशु तथा किशोर रूप से ही अधिक सम्बन्धित है। आजादी से पूर्व लिखे गये मनोवैज्ञानिक उपन्यास में ‘शेखर: एक जीवनी’ एक मात्र ऐसा उपन्यास है, जो मनुष्य के सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्थिति को नये सिरे से विश्लेषित करता है। वह विश्लेषण करते समय खुद को प्रकृति के नजदीक पाता है।
शेखर के व्यक्तित्व का निर्माण मूलत: भय, काम एवं अहं के द्वारा होता है। काम उसको व्यक्ति बनाता है, जबकि भय समाज की निर्मिति करता है। शेखर भय को समाज-रहित रखना चाहता है। उसका मानना है कि भय नहीं होना चाहिए चाहे ईश्वर का भय हो, मृत्यु का भय हो अथवा रोजमर्रा जीवन में टाइपीकरण का भय हो। शेखर इन सबका विरोध करता है। उसका विरोध समाज के संरचनात्मकता को बदल देता है। साथ ही अज्ञेय अंधविश्वास, छुआछूत, प्रलोभन से ऊपर उठकर मानवता को सृजित करते हैं।
शेखर का विद्रोह केवल सामाजिक संस्थाओं का विद्रोह नहीं है, बल्कि अलौकिक सत्ता, शाश्वत मूल्यों का भी विरोध है। मृत्यु जैसे शाश्वत मूल्य का शेखर विरोध करता है उसे मृत्यु से डर नहीं लगता। वह मृत्यु भय को आजादी का बाधक मानता है। अज्ञेय लिखते हैं-
”मृत्यु के प्रति उपेक्षा और निर्भरता का भाव क्रान्तिकारियों की विशेषता है। शेखर कहता है मुझे तो फाँसी की कल्पना सदा मुक्त करती है… एक सम्मोहन एक निमंत्रण जो कि प्रतिहिंसा के प्रति मंत्र को भी कवितामय बना देता है।” (2)
‘शेखर एक जीवनी’ में हम कई भावनाओं का तीव्र संश्लेष पाते है। शेखर का बचपन और उसका विशिष्ट प्रकार का मनोवैज्ञानिक विकास, शेखर में प्रेम की गहनता संवेदना, शेखर के मानस में देश की पराधीनता के प्रति गहरा आक्रोश और उसे उखाड़ फेंकने के लिए स्वयं को उत्सर्ग करने का क्रांतिकारी संकल्प। शेखर का अदम्य साहस, शेखर की निर्भयता, शेखर का एक सृजनशील व्यक्तित्व।ये सारे तत्व उपन्यास में अत्यंत संश्लिष्ट रूप से संगुफित है। ‘शेखर एक जीवनी’ का शेखर जीवन भर विद्रोह करता है।अज्ञेय मानते है कि
“विद्रोही उत्पन्न नहीं होते है”… किंतु विद्रोही भावना के फलने फूलने में वह समाज का अवदान अस्वीकार भी नहीं करते है”(3)
मानव जीवन को प्रेरित करने वाली तीन महती प्ररेणाओं को शेखर स्वीकृति देती है और वे है…सेक्स, यानी प्रेम ,भय और अहंता यानी अहंकार।इन तीनों प्ररेणाओं का क्रम देते हुए वह कहता है कि प्रेम ने मनुष्य को मनुष्य बनाया , भय ने उसे समाज का रूप दिया।अहंकार ने उसे राष्ट्र के रूप में संगठित किया। बच्चन सिंह के अनुसार
“विद्रोह उसकी अस्मिता का कवच है वह विद्रोह करता है- सामाजिक प्रणालियों के विरूद्ध, प्रेम के विरूद्ध, विवाह के विरूद्ध, हर चीज़ के विरूद्ध।”(4)
शेखर एक ऐसा पात्र है जो अहं की भावना से भरा हुआ है। जीवन में हर तरह की घटित हो रही घटना का शेखर ख़ुद को केंद्र मानता है। शेखर बहुत ही जिज्ञासु है। वह अपने बाल्यकाल में ख़ूब सवाल पूछता है और उन सवालों के जवाब न मिलने पर घंटों एकांत में बैठकर उन पर मंथन करता है, विचार करता है। धीरे-धीरे उसे अपने एकांत से प्रेम हो जाता है और वह अपना अधिकतम समय एकांत में ही बिताता है।
शेखर स्वभाव से मूलत: एक विद्रोही है जिसे अज्ञेय ने क्रांतिकारी कहा है। शेखर का विद्रोह अपने ही परिवार के सदस्यों से होता है, जब उसे अपने सवालों के संतोषजनक जवाब नहीं मिलते। शेखर का विद्रोह ईश्वर के प्रति होता है, जब वह देखता है कि ईश्वर की देखरेख में संसार की सभी बुरी घटनाएँ घट रही है। शेखर का विद्रोह उन जवाबों के प्रति होता है, जिनमें तर्कशील विवेक का अभाव है।
‘शेखर एक जीवनी’ का उद्देश्य एक व्यक्ति के जीवन के विविध परिस्थितियों के संदर्भ में उसके अन्तर्लोकों का विश्लेषण एंव समाज में उसका स्वतंत्र स्थापन ही है। शेखर जोकि अपनी चेतना में विद्रोही है, सामाजिक जीवन को किस प्रकार जीता है। इसी जीवन नाम का उपन्यास प्रस्तुत किया है।इस उपन्यास में केवल विद्रोह भावना के ही दर्शन होते हैं।
अत: इस उपन्यास में शेखर के माध्यम से व्यक्तिगत प्रेम भावनाओं के संवेदनात्मक और व्यापक चित्रण के साथ, पृष्ठभूमि में विद्रोही मानव-मन और समाज के बीच विरोध की गाथा भी, उसी अंदाज़ और रफ्तार से चलती रहती है। ‘अज्ञेय’ ने शेखर के बालपन की घटनाओं से उसके विद्रोही, जिज्ञासु, विचारशील, स्वाभिमानी और कठोर होने का चित्र रचा है। वयःसंधि के शेखर के मन में अथाह प्रश्नों का जाल है, जिसके उत्तर की खोज में वह आता फिरता है।
निष्कर्ष:
‘शेखर एक जीवनी’ उपन्यास में शेखर के माध्यम से व्यक्तिगत प्रेम भावनाओं के संवेदनात्मक और व्यापक चित्रण के साथ साथ पृष्ठभूमि में विद्रोही मानव के मन और समाज के बीच विरोध की गाथा भी प्रकशित किया गया हैं। ‘शेखर एक जीवनी’ उपन्यास युग सापेक्ष है युगानुरूप परिदृश्य में शेखर की प्रासंगिकता को नकार नहीं सकते है। शेखर एक जीवनी उपन्यास जिस समय लिखा गया था उस समय भी प्रासंगिक था और आज के समय में भी ‘शेखर एक जीवनी’ प्रासंगिक है।
संदर्भ ग्रंथ सूची:
- अज्ञेय स्वातंत्र्य की खोज-कृष्णदत्त पालीवाल, ग्रंथ अकादमी दिल्ली, प्रथम संस्करण-2017, पृष्ठ संख्या-191
- शेखर एक जीवनी-अज्ञेय, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, संस्करण-1999
- हिंदी साहित्येतिहास के कुछ ज्वलंत प्रश्न, वाणी प्रकाशन, प्रथम संस्करण-2018, पृष्ठ संख्या-134
- कथा साहित्य के सौ बरस-विभूति नारायण राय, शिल्पायन दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ संख्या-321