महादेवी वर्मा हिन्दी की प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक है जिनकी गणना छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भों में की जाती है। अनुभूतियां जब तीव्र होकर कवि हृदय से उच्छलित होती है तो उन्हे कविता के रूप में संजोया जाता है। महादेवी वर्मा ने मन की इन्ही अनुभूतियों को अपने काव्य में मर्मस्पर्शी, गंभीर तथा तीव्र संवेदनात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है। महादेवी जी ने अपना काव्य वेदना और करूणा की कलम से लिखा उन्होने अपने काव्य में विरह वेदना को इतनी सघन्नता से प्रस्तुत किया कि शेष अनुभूतियां भी उनकी पीड़ा के रंगों में रंगी हुई जान पड़ती है। महादेवी के काव्य का प्राण तत्व उनकी वेदना और पीड़ा रहे। वे स्वयं लिखती है:
“दुःख मेरे निकट जीवन का ऐसा काव्य है जो सारे संसार को एक सूत्र में बांधने की क्षमता रखता है।”(1)
हिंदी साहित्य में जितने भी प्राय: कवि है, उनके काव्य में करूणा और वेदना की भावना दिखाई देती है, उन कवियों में महादेवी जी भी एक है महादेवी की कविताओं में विस्मय, जिज्ञासा, व्यथा के भाव मिलते है। कवयित्री के गीतों में अनुभूति और विचार के धरातल पर एकान्विति मिलती है। वेदना, पीड़ा एवं करूणा मानव की वे प्रवृतियाँ है। जिनका सम्बंध हद्वय के कोमल पक्षों से है। करूणा अथवा सहानुभूति जीवन का एक ऐसा वरदान है जो मानव को मानव के साथ अनुभूति के एक ही सम्बन्ध मे बाँध देता है। सबकी दुख की अनुभूति एक समान है।दुख सबको भोगना पड़ता है। अत: एक की दूसरे के साथ सहानुभूति है।
महादेवी की विरह वेदना में निश्चलता और सात्विकता के दर्शन होते हैं। विरह रूपी संगीत महादेवी की आत्मा को झंकृत करता है तथा वेदना इनके जीवन के प्रकाशमान करती है। विरह की सात्विकता महादेवी की कविताओं में विश्व वेदना बन.जाती है। उनके प्रथम काव्य संग्रह ‘नीहार‘ के एक गीत में विरह जन्य व्याकुलता के साथ संयोग की इच्छा भी छिपी हुई है।
“जो तुम आ जाते एक बार कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग,
गाता प्राणो का तार – तार अनुराग भरा उन्माद राग,
छा जाता जीवन में बसन्त लुट जाता चिर संचित विराग,
आंखे देती सर्वस्ववार “(2)
उनकी पीड़ा हृदय की शांत और गंभीर पीड़ा थी।चिर विरह की भावना के कारण महादेवी की कविताओं में उनके हृदय की करूणा दिखाई देती है। करूणा से भरी होने के कारण महादेवी की वेदना भी परिष्कृत रूप में अभिव्यक्त हुई है। महादेवी स्वयं कहती है
“ऐसा काव्य जो संसार को एक सूत्र में बाँध रखने की क्षमता रखता है।
हमारे असंख्य सुख चाहे, मनुष्यता की पहली सीढ़ी तक भी न पहुँचा सकें,
किन्तु हमारा एक बूँद आँसू भी जीवन को अधिक मधुर अधिक उर्वर बनाए नही गिर सकता।”(3)
महादेवी जी ने अपने काव्य में एक तरफ तो भारतीय नारी के असंतोष, निराशा और आकांक्षा स्वर मुखरित हुई है। उनकी कविताओं
“मैं नीर भरी दुख की बदली विरह वेदना का नाम ले,
मैं विरह में चिरलीन हूं,
मैं अपने सूनेपन की रानी हूं मतवाली,
तुमको पीड़ा में ढूंढा”
आदि में उन्होने वेदना, करूणा, विरह तथा दुख को अभिव्यक्त किया है। महादेवी के काव्य में जो विरह वेदना हमें देखने को मिलती है। वह उनकी अश्रुधारा बनकर सीधे पाठक के हृदय को प्रभावित करती है।वे एक जगह स्वयं को “मैं नीर भरी दुख की बदली” कहती है।महादेवी जी के काव्य में जो विरह दिखाई देता है, वह अपने प्रियतम से मिलने की आतुरता के कारण है। “नीहार” महादेवी के किशोर जीवन की वह रचना है, जिसमें उसका मन प्रणय और पीड़ा के वशीभूत हो रहा था। कवयित्री का मन एक ऐसा अनोखा संसार बसाना चाहता है जहां वेदना की मधुर धारा बह रही हो।
“चाहता है यह पागल प्यार।
अनोखा एक नया संसार।।
कलियों के उच्छवास शून्य में ताने एक वितान
तुहिन कणों पर मृदु कम्पन से सेज बिछादे गान।”(3)
महादेवी की वेदना वैयक्तिक है।किंतु युग की सार्वजनीनता और सार्वदेशिकता की अनन्तता भी उन्हें सहज समाप्त हो गई है। उनकी समस्त कृतियों पर इस दुखवाद की एकातनता का एकछत्र निर्वाह हम देखते है। यह पीड़ा यह टीस महादेवी के काव्य में स्वयंमेव ही आ गई है।जिसे वे सँवारती और संजोती चलती है।वे अपने को वेदना की रानी कहती है:
“अपने इस सूनेपन की मैं हूँ रानी मतवाली
प्राणों का दीप जलाकर करती रहती रखवाली”
महादेवी वर्मा की कविताओं में निजी जीवन से जुड़े सांसारिक सुख-दुख, करूणा, आनंद और हास्य रूदंन की खुलकर अभिव्यक्ति हुई है। महादेवी के काव्य में एक ओर विरह वेदना है तो दूसरी ओर आशामय जीवन है।वे दुःख में भी सुख को देखती है तथा अपने प्रिय का स्मरण करते हुए खिल उठती है।
“नैनों में आंसू है,
और हृदय में सिहरन है,
पुलक -पुलक उर सिहर-सिहर तन,
आज नयन आते क्यों भर – भर।”(4)
महादेवी वर्मा की कविताओं में अभिव्यक्त प्रेम और विरह की भावना इतनी गहन आलौकिक है कि वह रहस्यवाद की सीमा तक पहुँचती जाती है।जब कोई कवि किसी संसारी व्यक्ति की अपेक्षा किसी अव्यक्त, अगोचर एंव असीम सत्ता के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है तो उसे रहस्यानुभूति अथवा रहस्यवाद कहा जाता है।
महादेवी की करूणा के मूल मे ब्रहा से वियोग का भाव ध्वनित होता है, यह कहा जा चुका है इसी ब्रह्म प्रिय की खोज में महादेवी अन्तर्मुखी हो गई है। उनके काव्य का मूल द्रव करूणा-सिक्त हो उठा है। संयोग और वियोग के इसी ताने बाने के बीच महादेवी का जीवन चल रहा है।हाँलाकि वह संयोग को नहीं चाहती उनमें वियोग है, किंतु अलौकिक के प्रति संयोग की भावना भी।इसलिए उनका काव्य रहस्यमय हो उठा है। महादेवी जी के वेदना संसार में जहाँ एक ओर विश्व कल्याण का स्वर है, वहीं दूसरी ओर असीम के चिर वियोग से उत्पन्न पीड़ा की गूंज है। कवयित्री महादेवी वर्मा की वेदनानुभूति में मानवीय एंव आध्यात्मिक दोनों आधारभूमियों पर वेदना का निरूपण किया गया है।
निष्कर्ष:
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है महादेवी ने जिन भावों को केंद्र बनाकर कविता का सृजन किया है, वे मूलभूत भाव वेदना,प्रेम,रहस्य और दर्शन है। कवयित्री ने अपने काव्य में अपने निजी जीवन और जगत से उपलब्ध सुख – दुःख, हास्-रूदन, हर्ष-शोक तथा आनंद और करूणा की अभिव्यक्ति की है।उनके काव्य में विरह वेदना और प्रेम की मूक पीड़ा अत्यन्त मार्मिकता के साथ व्यक्त की गई है। अपनी विरहानुभूति में कल्पना, करूणा, सात्विकता, भावोदे्रक, आशावादी दृष्टिकोण आदि सम्मिलित करते हुए महादेवी जी ने अपने काव्य को सुसज्जित किया है। उनकी विरहानुभूति को देखकर उन्हे आधुनिक काव्य की मीरा कहा जाता है।
संदर्भ सूची:
- यामा की भूमिका, महादेवी वर्मा, पृष्ठ संख्या – 3
- यामा, महादेवी वर्मा, पृष्ठ संख्या -63
- यामा, संध्यागीत, पृष्ठ संख्या – 239
- वही , पृष्ठ संख्या -123
सहायक ग्रंथ सूची :
- महादेवी नया मूल्यांकन – गणपति चन्द् गुप्त, भारतेंदु भवन आगरा, प्रथम संस्कंरण – 1969
- महादेवी साहित्य एक नया दृष्टिकोण – पद्ममसिंह चौधरी, अपोलो प्रकाशन जयपुर, 1974