आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में जयशंकर प्रसाद का साहित्य बहुआयामी होने के साथ राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का गौरवपूर्ण साहित्य है। डाँ कमंलाकांत पाठक के अनुसार
“श्री जयंशकर प्रसाद हिन्दी की उस नवीन काव्यधारा के प्रवर्तक थे। जो छायावाद के नाम से अभिहि हुई। छायावाद का प्रथम उन्मेष ही नहीं उसका अन्यतम उत्कर्ष भी उन्हें के द्वारा प्रत्यक्ष हुआ।”
छायावाद के प्रमुख कवियों में जयंशकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमिंत्रानदंन पंत और महादेवी वर्मा की गणना होती है। इसमें से प्रसाद जी छायावाद के प्रवर्तक माने जातेहै।जयंशकर प्रसाद की अधिकतर रचनाएं कल्पना और इतिहास के सुंदर समन्वय पर आधारित है।तथा प्रत्येक काल में यथार्थ को गहरे स्तर पर संवेदना की भावभूमि प्रस्तुत करती है।छायावाद एक ऐसी काव्यधारा का नाम है जिसमें भौतिक एंव आध्यात्मिक दोंनों ही प्रवृत्तियों का मिलाजुला रूप दिखाई देता है।जिन लोगों ने छायावाद का मात्र शैलीगत आंदोलन माना है,वे अपने कथन को अव्याप्ति दोष से युक्त कर गये है। वस्तुत: छायावाद शैली का आंदोलन नहीं है, उसमें शैली के साथ साथ भावों की जो विविधता और चिंतन की जो प्रवृति प्रेरित गहनता दिखाई देती है उसे भी विस्मृत नहीं किया जा सकता।
हिंदी कविता में छायावाद को प्रतिष्ठित करने का श्रेय प्रसाद को है। डाँ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के शब्दों में प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक ही नहीं है, अपितु उसकी प्रौढ़ता, शालीनता, गुरूता गभीरता के पोषक कवि है।(1)
प्रसाद अपने युग के अत्यंत प्रतिभावान एंव जागरूक छायावादी कवि है।हिन्दी साहित्य में तुलसीदास की’रामचरितमानस’ के बाद हिन्दी का दूसरा अनुपम महाकाव्य ‘कामायनी’ को माना जाता है। यह ‘छायावादी युग’ का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। इसे छायावाद का ‘उपनिषद’ भी कहा जाता है। कामायनीआधुनिक युग की श्रेष्ठ कृति है।यह छायावादी युग की चरम उपलब्धि है।और प्रसाद जी के कृतित्व का उत्तमंश है इसमें मानवमात्र की चिरन्तन पुकार को अभिव्यक्त किया गया है।यह पुकार उन लोगों का मार्गदर्शन कर रही है।जो निराश, भयग्रस्त , भ्रमित और विविध विसंगतियों के साथ जीवन बिता रहे है।इतना ही नहीं कामायनी के माध्यम से कवि प्रसाद ने ”विजयिनी मानवता हो जाए” का अमर संदेश भी प्रसारित किया है। और “आनंद अखण्ड घना था” को चरम सोपानों पर ले जाकर मानव को सुख और शांति का मंगलमय संदेश भी दिया है।छायावादी युग की यह एक ऐसी अकेली रचना है जिसमें सम्पूर्ण काव्यधारा का उत्तमांश समाहित हुआ है। छायावाद मे कल्पनाशीलता एंव वैयक्तिकता का स्वर साफ सुना जा सकता है।ये दोनों स्वर कामायनी में बखूबी सुने जा सकते है। हरिचरण शर्मा अपना मत व्यक्त करते हुए लिखते हैं –
“यह माना कि कामायनी छायावाद का उपनिषद् है, यह भी माना कि वह आधुनिक युग की श्रेष्ठ कृति है, यह भी सत्य है कि उसमें सृष्टि के विकास की क्रमिक रूपरेखा प्रस्तुत की गयी है, पर यह सबसे बडा सत्य है कि कामायनी एक जीवन-काव्य है।”
‘कामायनी’ आधुनिक हिन्दी साहित्य का अमर महाकाव्य है, जिसमें आधुनिक युग की विशेषताओं और प्रवृत्तियों का पूर्ण प्रतिनिधित्व हुआ है और जो अनेक दृष्टियों से अपने युग के पूर्ववर्ती समस्त भारतीय महाकाव्यों से भिन्न एक निराले स्थान का अधिकारी है। छायावादी काव्यधारा के अंतर्गत जो काव्य लिखे गए, उन सभी में प्रसाद का ‘कामायनी’ अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आधुनिक युग की मीरा कही जाने वाली हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा जी ने लिखा है-
‘‘प्रसाद जी की कामायनी महाकाव्यों के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ती है, क्योंकि वह ऐसा महाकाव्य है जो ऐतिहासिक धरातल पर प्रतिष्ठित है और सांकेतिक अर्थ में मानव विकास का रूपक भी कहा जा सकता है। कल्याण भावना की प्रेरणा और समन्वयात्मक दृष्टिकोण के कारण वह भारतीय परम्परा के अनुरूप है।”(2 )
“इस प्रकार प्रसाद जी ने ‘कामायनी’ में स्थूल पौराणिक या ऐतिहासिक घटनाओं के भीतर निहित सूक्ष्म और चिरंतन भाव सत्यों की खोज करके उन्हें शाश्वत जीवन मूल्यों के रूप में प्रतिष्ठित किया है और उन्हें ही ‘आत्मा की अनुभूति’ कहा है।”(3)
प्रसाद का यह महाकाव्य पूर्ववर्ती सभी महाकाव्यों से भिन्न भूमिका पर प्रतिष्ठित है क्योंकि इसमें स्थूल घटनाओं और पात्रों की नहीं, अपितु सूक्ष्म मनोवृत्तियों और भावनाओं के विकास क्रम की कथा कही गई है। कामायनी प्रसाद जी की श्रेष्ठ रचना है जो प्रसाद में है वहीं कामायनी में है कामायनी काव्यदर्शन और इतिहास की त्रिवेणी है पर उसमें न तो दर्शन काव्य पर हावी हुआ है और न ही इतिहास काव्य पर।प्रसाद की यह अद्भुत विशेषता है इन तीनों का एकमेव कर उन्होंने कामायनी की रचना की ।
“कामायनी यदि छायावाद का उपनिषद् है तो आधुनिक युग की विसंगतियों का दर्पण भी।”(4)
छायावाद ने जिस वेदना को अपनाया ,जिस अवसाद और निराशा को काव्य का उपजीव्य बनाया ,वह भी कामायानी म़े देखी जा सकती है।कामायनी में जो निराशा, अवसाद और वेदना के भाव है, वे मनु की वेदना तक सीमित नहीं है।वे कलाकार की वेदना से भी जुड़े हुए है। कामायनी के मनु जब चिंताग्रस्त दिखाई देते है तब वे न केवल वेदना से व्याकुल होते है,अपितु निराशा के चरम बिंदु पर पहुँचकर अवसाद और पीड़ा को आंमत्रित करते है। उनका यह कथन “विस्मृति आ अवसाद घेर ले ,नीरस बस चुप कर दें इसका प्रमाण है।इस प्रकार कामायनी में स्थूल पौराणिक या ऐतिहासिक घटनाओं के भीतर निहित सूक्ष्म और चिरंतन भाव सत्यों की खोज करके उन्हें शाश्वत जीवन मूल्यों के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
कामायनी की कथा के अतिरिक्त इसके चरित्र भी प्रसाद जी ने प्राचीन ग्रंथों से ग्रहण किए है। मनु, श्रद्धा, इड़ा का नाम अनेक प्राचीन ग्रंथो में मिलता है।भारतीय विद्वानों ने महाकाव्य के नायक के चरित्र का धीरोदात्त गुण समन्वित होना आवश्यक माना जाता है। जिसका तात्पर्य यह है कि उसे उन नैतिक सामाजिक और धार्मिक आदर्शों का प्रतीक होना चाहिए, जिन्हें तत्कालीन समाज में मान्यता प्राप्त थी। इसके साथ ही प्रसाद जी ने श्रद्धा और इड़ा के जो चरित्र प्रस्तुत किए वे यथार्थवादी धरातल पर होते हुए भी मानव जीवन की उच्च सुरूचियों और उच्च भावनाओं के स्वरूप के प्रतीक हैं। यह भी एक महान प्रयास है और यह तत्व महाकाव्य परम्परा को नया आयाम देता है। इसी प्रकार इड़ा भी एक बुद्धिवादी नारी के रूप में चित्रित हुई है। वह अपनी एकांगी बौद्धिक प्रवृत्तियों के होते हुए भी मानवीय गुणों से सम्पन्न हैं। वह निराश मनु को आश्रय देती है। अंतिम समय तक वह मनु को प्रेरित करती है।
शैली की दृष्टि से ‘कामायनी’ हिन्दी में अपने ढंग का निराला महाकाव्य है। उसमें शैली की वह गरिमा, भव्यता और उदात्तता पूर्ण रूप में विद्यमान है, जिसके बिना कोई काव्य ‘महाकाव्य’ पद का अधिकारी नहीं हो सकता। ‘कामायनी’ में शैली के विविध तत्वों और पक्षों तथा अभिव्यक्ति के विविध स्वरूपों की पूर्णता है और उन सबके सामंजस्य से ही उसमें शैलीगत और उदात्तता की प्रतिष्ठा हुई हैं। यहाँ हमें भावनाओं की सत्यता, व्यापकता और गहनता मिलती हैं।
‘कामायनी’ में अनुभूति की सूक्ष्मता और जटिलता की अभिव्यक्ति के लिए अभिव्यंजना के सभी कौशलों के उपयोग किए गये हैं। हमें इस महाकाव्य में लाक्षणिकता, ध्वन्यात्मकता, प्रतीकात्मकता एवं चित्रात्मकता, सुसंगठित अलंकार विधान सुंदर भाषा और सरल शब्द चयन आदि गुण प्राप्त होते हैं। ‘कामायनी’ का शिल्प किसी परम्परागत पद्धति का अनुसरण नहीं करता। कवि ने अपनी उदात्त कल्पना, प्रांजल अभिव्यक्ति से उसकी संपूर्ण योजना का निर्वाह किया है। काव्य में गीतिमयता का ग्रहण हमें अधिक मिलता है। माधुर्य गुण सम्पन्न भाषा भावों की लहर उठाती चलती है।
उद्देश्य की दृष्टि से कामायनी में मानव जीवन के संभावित विकास को दिखाया गया है। उद्देश्य की दृष्टि से इसकी तुलना मानस से की जा सकती है मानस की तरह कामायनी का उद्देश्य भी मानवतावादी और कल्याणकारी है। बौद्धिकता और भौतिकता के अतिरेक से पीड़ित और विविध प्रकार के संघर्षों से टूटे हुए मानव को चरम शांति का मार्ग बताना ही यहां कवि का उद्देश्य है।
निष्कर्ष:
कामायनी की कथा मूलत: एक कल्पना‚ एक फैण्टसी है। जिसमें प्रसाद जी ने अपने समय के सामाजिक परिवेश‚ जीवन मूल्यों‚ सामयिकता का विश्लेषित सम्मिश्रण कर इसे एक अमर ग्रन्थ बना दिया। यही कारण है कि इसके पात्र – मनु‚ श्रद्धा और इड़ा-मानव‚ प्रेम व बुद्धि के प्रतीक हैं। इन प्रतीकों के माधयम से कामायनी अमर हो गई। क्योंकि इन प्रतीकों के माध्यम से जीवन का जो विश्लेषण कामायनी में प्रसाद जी ने प्रस्तुत किया, वह आज भी उतना ही सामयिक है, जितना कि प्रसाद जी के समय में रहा होगा।
संदर्भ:
- जयंशकर प्रसाद एक विशेष अध्ययन- हरीश अग्रवाल ,हरीश प्रकाशन मंदिर आगरा ,पृष्ठ संख्या-8
- कामायनी एक परिचय भूमिका से- गंगा प्रसाद पाण्डेय और महादेवी वर्मा , पृष्ठ संख्या-8
- कामायनी की भूमिका- जयंशकर प्रसाद , पृष्ठ संख्या -4
- प्रसाद सृष्टि और दृष्टि- कल्याणमल लोढ़ा , नेशनल पब्लिशिंग हाउस कलकत्ता ,1994 ,पृष्ठ संख्या -9
सहायक ग्रंथ:
- छायावाद और मुकटधर पाण्डेय- रामनारायण पटेल ,वाणी प्रकाशन ,2015