अनुवाद के सिद्धांत

अनुवाद के सिद्धांत | Hindi Stack

भाषा किसी भी प्राणी के संप्रेषण का माध्यम होती है। अनुवाद और भाषा विज्ञान के संबंधों को रेखांकित करते समय यह ध्यान देना चाहिये कि भाषा विज्ञान और अनुवाद का संबंध अनुवाद के सिद्धांतों से ही स्थापित होता है। जिस प्रकार कोई भी व्यक्ति व्याकरण के ज्ञान के बिना एक अच्छा वक्ता नहीं हो सकता, उसी प्रकार अनुवाद के सिद्धांतों को बिना जाने कोई अच्छा अनुवादक भी नहीं बन सकता और अनुवाद के सिद्धांतों के ज्ञान के बिना अनुवाद करना संभव ही नहीं, बल्कि पूर्ण रूप से गलत भी होगा। अनुवाद मूलत: व्यवहार ही होता है और इस व्यवहार में रहकर ही अनुवादक अपने अभ्यास व अथक परिश्रम से एक अच्छा अनुवादक साबित होता है। लेकिन आनुवादक को अनुवाद के सम्यक रूप को जानने और समझने के लिये अनुवाद के सिद्धांतों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। अनुवाद के विभिन्न सिद्धांत इस प्रकार हैं:

संप्रेषणीयता का सिद्धांत (Theory of Communication)

अनुवाद का मूल उद्देश्य स्रोत भाषा के कथ्य और संदेश को लक्ष्य भाषा में संप्रेषित करना है, किंतु यह ध्यान रखना होगा कि सिर्फ भाषा का ही अनुवाद होना चाहिये मूल संदेश अथवा भाव न परिवर्तित हो जाये। सैम्युअल जॉनसन ने इस विषय में अपनी परिभाषा दी है- “To Translate is to change into another language retaining the sense.” इस परिभाषा के अनुसार एक भाषा में कही गई बात को दूसरी भाषा में संप्रेषित करना तथा इसमें भाव (Sense) को कायम/अक्षुण्ण(retain) रखना ही अनुवाद है। इस तथ्य को इस अनुवाद की सहायता से समझा जा सकता है… He was a difficult writer. का अनुवाद “वह एक कठिन लेखक था“ न होकर “वह एक गूढ़ लेखक था“ होगा। इसी संदर्भ में ए.एच. स्मिथ की परिभाषा भी महत्वपूर्ण प्रतीत होती है,

“To translate is to change into another languaue retaining as much as of the sense as one can.”

समतुल्यता का सिद्धांत(Theory of Euivalence)

जे.सी.केटफोर्ड ने अनुवाद की परिभाषा देते हुए कहा है-

“Translation is the replacement of textual material in one language by equivalent textual material in another language.”

अर्थात

“स्रोत भाषा की सामग्री का लक्ष्य भाषा की समतुल्य पाठ्य सामग्री द्वारा प्रतिस्थान(replacement) ही अनुवाद है।”

यह समतुल्यता निम्नलिखित स्तरों पर देखी जा सकती है:-

ध्वनि स्तर पर समतुल्यता:

संज्ञावाचक शब्दों में ध्वनियों का लिप्यंतरण लक्ष्य भाषा में उस शब्द का उच्चारण बिल्कुल स्रोत भाषा जैसा ही लिखना चाहिये। उदाहरणार्थ जैसे फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति Mitterand को मिटरैंड न लिखकर “मित्तरां“ लिखा जाना चाहिए।

शाब्दिक स्तर पर समतुल्यता:

कुछ शब्दों के लिए लक्ष्य भाषा में पर्याय बना दिए गए हैं, ऐसे शब्दों के लिये उन्हीं मानक पर्यायों का उपयोग किया जाना चाहिये, उदाहरणार्थ Atom के लिये परमाणु Electricity के लिये विद्युत अथवा बिजली और Finance के लिए वित्त शब्द तय किया गया है।

पद स्तर पर समतुल्यता:

एक से अधिक शब्दों के समूह को पद कहते हैं। इस बात का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि पद का पर्याय लक्ष्य भाषा की संरचना एवं प्रकृति से भिन्न न हो अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने की पूर्ण सम्भावना रहती है। उदाहरणार्थ जैसे Partial modification का अनुवाद “आंशिक आशोधन“ होगा। इसी तरह “Capital Punishment” का अर्थ “पूंजी दंड“ न होकर ”मृत्यु दंड“ होगा।

वाक्य के स्तर पर समतुल्यता :

संपूर्ण वाक्य को समग्र रुप से समझते हुए लक्ष्य भाषा की व्याकरणिक संरचना को पूर्ण रूप से ध्यान में रखकर ही उसका पर्याय दिया जाना चाहिए। उदाहरणार्थ जैसे This action will be liable to criticism. उसकी कार्रवाई की आलोचना अवश्य होगी।

प्रकार्य के स्तर पर समतुल्यता:

जिस तरह नाटकों में विभिन्न संवादों का भिन्न-भिन्न प्रयोजन होता है उसी तरह किसी शब्द, पद, वाक्य का भाषा की दृष्टि से एक विशेष प्रयोजन होता है। उदाहरणार्थ जैसे स्रोत भाषा में किसी संवाद का प्रयोजन पाठक में त्रासदी (Tragedy) का भाव उत्पन्न करना होता है और अनुवाद करने पर पाठक में उसका भाव त्रासदी के बजाय कॉमदी (Comedy) होता है, तो ऐसी स्थिति में यहां अनुवाद पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। यदि “मेरा सिर चकरा रहा है” का अंग्रेजी अनुवाद My head is circling या eating circle किया जाये तो यह हास्यस्पद होगा।

प्रोक्ति स्तर पर समतुल्यता:

ध्वनि, शब्द, पद तथा वाक्य स्तर पर समतुल्यता कायम रखते हुए अंतत: प्रोक्ति के स्तर पर भी समतुल्यता कायम करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

अर्थ एवं शैली का सिद्धांत (Theory of meaning and style)

संसार की सभी भाषाओं की अपनी-अपनी शैलीगत विशेषताएं हैं तथा एक शब्द के अलग-अलग रुप में अलग–अलग अर्थ भी होते हैं। नाइडा ने अनुवाद की जो परिभाषा दी :-

“Translating consists in producing in the receptor language first in meaning and secondly in style.”

उसके अनुसार,

“अनुवाद स्रोत भाषा(source language) की पाठ्यवस्तु से निकटतम सहज समतुल्य (closest natural equivalent) लक्ष्य भाषा में अंतरण है,”

ऐसा करते समय पहले अर्थ और उसके पश्चात लक्ष्य भाषा की शैलीगत विशेषताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। वैदिक सूक्ति सत्यम् शिवम् सुंदरम् का अनुवाद प्लेटो द्वारा किए जाने पर वह “The truth The good The beauty” हुआ परंतु समतुल्य अंग्रेजी रुपांतरण करते हुए हिंदी में अनुवाद करने पर यह सत्य शिव और सुंदर नहीं होगा। इसी तरह The President is pleased to appoint Shri .. का अनुवाद लक्ष्य भाषा में श्री…… को नियुक्त करते हैं, न कि राष्ट्रपति सहर्ष श्री……… को नियुक्त करते हैं। यहां इस वाक्य को स्रोत भाषा में लिखने की अंग्रेजी भाषा की अपनी शैली या विशेषता है। लक्ष्य भाषा की शैलीगत विशेषता के अनुरुप कई बार स्रोत भाषा के कई शब्दों का अनुवाद आवश्यक नहीं होता। उदाहरणार्थ जैसे Please sit down का अर्थ हिंदी में “कृपया बैठिए” या “बैठ जाइए” के स्थान पर “बैठिए” अथवा “तशरीफ रखिए” में काम चल जाएगा। welcome delegates के लिए “प्रतिनिधियों का स्वागत“ के स्थान पर “सुस्वागतम” लिखना बेहतर होगा।

सांस्कृतिक एक्य का सिद्धांत

भाषा समाज को आपस में जोड़ने का कार्य करती है। व्यक्ति जिस समाज में पैदा होता है पला-बढ़ा होता है उसके संस्कारों में रच-बस जाता है। एक-दूसरे के संस्कारों से विश्व में मानव कल्याण की भावना पनपती है। अनुवाद के माध्यम से ही विभिन्न संस्कृतियां एक दूसरे के साथ संप्रेषण करती हैं। अनुवाद करते हुए ही एक व्यक्ति, समाज तथा देश विदेश की सांस्कृतिक विशेषताएं दूसरे व्यक्ति, समाज तथा देश तक पहुंचती हैं। यही कारण है जिसके कारण आज विश्व एक गाँव के रूप में सामने आ रहा है।

व्याख्या का सिद्धांत (Theory of Interpretation)

बहुत से शब्द ऐसे होते हैं जिनका सामान्य अनुवाद करने पर उनका अर्थ प्रतीत नहीं होता और उस स्थिति में उनकी व्याख्या करनी आवश्यक हो जाती है। Exploitation of resources के लिए—“संसाधनों का शोषण” नहीं लिखा जाना चाहिए क्योंकि यहां पर संसाधन शोषण/उत्पीड़ण नहीं है। इसका हिंदी पर्याय “संसाधनों का दोहन” होगा। यहां दोहन का अभिप्राय संसाधनों के सदुपयोग से है। इसी तरह, AIIMS (एम्स) बोलचाल के लिए ठीक है परंतु लिखने के लिए “ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडीकल साइंसेज“ अथवा “अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान“ ही उपयुक्त होगा।

पुन: कोडीकरण का सिद्धांत (Theory of recodification)

इस सिद्धांत के जनक अमेरिका के भाषा वैज्ञानिक विलियम फ्राउले हैं। उन्होंने भाषा को, भाषा की समस्त शाब्दिक संकेतों में आबद्ध करने की अवधारणा प्रस्तुत की। फ्राउले के अनुसार अनुवाद में स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा का अलग अलग Data Martix यदि बना लिया जाये तो आँकड़ों अथवा अंकों के माध्यम से भाषा के शब्दों और उनके अर्थों में समानता, समरूपता और पर्याय का निर्धारण किया जा सकता है अर्थात एक भाषा के कोड को दूसरी भाषा के कोड से सम्बंध स्थापित कराना और पुन: दूसरे भाषिक कोड को भाषिक संरचना में बदलना पुन:कोडीकरण कहलाता है। कम्प्युटर आधारित मशीनी अनुवाद इसी सिद्धांत पर आधारित है। उदाहरणार्थ Matrix code में विद्यमान सामग्री “Life Insurance made its debut in India well over 100 years“ का Target code(लक्ष्यकोड) में “जीवन बीमा की भारत में शुरुआत 100 वर्ष पहले हो गई थी,” होगा। यह लक्ष्य भाषा में एक नए कोड में होगा और इसी को अनुवाद कहते हैं।

निष्कर्ष:

इस तरह अनुवाद की विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर विभिन्न सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं। निष्कर्ष के तौर पर यही कहा जाता है कि अनुवाद एक सतत् अभ्यास की प्रक्रिया है। अभ्यास के साथ-साथ अनुवाद साधन भी है। इसमें जो जितना अभ्यासरत होगा वह उतना ही अधिक सफल एवं कुशल अनुवादक होगा। इन सिद्धांतों की सार्थकता सिद्ध करने के लिए अनुवादक को सुधी पाठक होना चाहिए। आज विश्व के तमाम देशों में आपस में अनेकों खेल, रक्षा, तकनीकी, शिक्षा, चिकित्सा तथा मनोरंजन आदि संबंधी अनेकों सौदे हो रहे हैं। इससे भी अधिक वैश्वीकरण तथा उदारीकरण के इस दौर में व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा भी बढ़ गई है। प्रत्येक राष्ट्र अपनी अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्रदान कराना चाहता है। इसके लिए वह विश्व के किसी भी कोने से सर्वोत्तम तकनीकी/प्रौद्योगिकी अपने देश में लाना चाहता है। ऐसे में अनुवादक की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। अत: अनुवादकों को अनुवाद में मूलनिष्ठता, सहजता, सटीकता, प्रभावशीलता तथा मौलिकता लाते हुए अनुवाद को अत्यधिक सार्थक बनाना होगा।


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