अनुवाद देखने मे जितना सरल प्रतीत होता है वास्तव मे यह उतना ही जटिल होता है। जब हम व्यावहारिक अनुवाद की तरफ़ उन्मुख होते हैं तो हमें इसकी जटिलता पता चलती है जिसमें विभिन्न प्रकार की समस्याये शामिल होती हैं। एक अच्छे अनुवादक के लिये यह नितांत आवश्यक होता है कि वह इन समस्यायों से न सिर्फ परिचित हो बल्कि इनका समाधान करने का प्रयास भी करे। अनुवाद मे आने वाली कठिनाइयां अनुवादक की क्षमता पर निर्भर होती है। यदि अनुवादक को लक्ष्य भाषा, स्रोत भाषा और विषय पर अधिकार नही होगा तो उसके अनुवाद की समस्याये बढ़ती जायेंगी। हालाँकि इन सब ज्ञान के होने के बाद भी अनुवाद मे समस्याये आती ही हैं।
अनुवाद की समस्याएँ
अनुवाद मे यूँ तो अनेक समस्याये सम्मिलित रहती हैं किंतु हम यहां अनुवाद मे आने वाली समस्याये मुख्य समस्याओं के विषय मे ही चर्चा करेंगे। अनुवाद में आने वाली मुख्य समस्याये निम्न प्रकार हैं:
व्याकरण सम्बंधी अनुवाद:
व्याकरण किसी भी भाषा का महत्वपूर्ण अंग होता है और प्रत्येक भाषा व्याकरण के नियमों से ही नियंत्रित होती है। लक्ष्य भाषा और स्रोत भाषा दोनों के व्याकरण का पैमाना अलग अलग होता है। वाक्य रचना, वचन प्रक्रिया, लिंग विधान सब भिन्न-भिन्न होता है। इसलिये अंग्रेजी मे वह के लिये He और She का प्रयोग किया जाता है। किंतु हिंदी मे इसका अर्थ वह ही होगा। इसी प्रकार He is my father का अनुवाद होगा- वह मेरा पिता है- जो कि तर्कसंगत नहीं है हमें कहना होगा वह मेरे पिता जी हैं- हिंदी मे ‘जी’ शब्द का अतिरिक्त प्रयोग है और ‘हैं’ शब्द का प्रयोग सम्मान देने के लिये प्रयोग किया गया है। और अंग्रेजी का वाक्य एकवचन में होते हुए भी हिंदी में इसका अनुवाद बहुवचन में हुआ है। इसलिये एक अनुवादक के तौर पर यह आवश्यक है कि व्याकरण, रचना प्रक्रिया, और भाषागत भिन्नताओं को ध्यान में रखकर ही अनुवाद करे।
भाषागत प्रयुक्तियाँ:
प्रत्येक भाषा के प्रयोग के अपने नियम होते हैं अर्थात् एक भाषा में जो अनिवार्य है तो आवश्यक नहीं कि दूसरी भाषा में भी उसका कोई अर्थ हो दूसरी भाषा में वह अर्थहीन हो जाता है। यदि हम अंग्रेजी में कहें कि- There are five birds on the tree. इसका हिंदी में शाब्दिक अनुवाद होगा- वहां पेड़ के ऊपर पाँच चिड़ियाँ हैं। परंतु यह इसका सही अनुवाद नहीं है। इसका सही अनुवाद होगा- पेड़ पर पाँच चिड़ियाँ हैं। इस वाक्य में There और The का अनुवाद नहीं किया गया है। इस प्रकार भाषा की प्रकृति और विशेषता को सदैव ध्यान मे रखकर अनुवाद करना चाहिये अन्यथा विकट समस्या पैदा हो सकती है।
संकल्पनाओं संबंधी समस्याये:
किसी भी क्षेत्र की भाषा सदैव प्रवाहमान एवं गतिशील रहती है। देश-दुनिया में निरंतर नई-नई खोजें, आविष्कार, प्रयोग होते रहते हैं जो अनुवादकों के लिये नई-नई मुसीबते पैदा करते रहते हैं। आप जिस विषय का अनुवाद कर रहे हैं उस विषय की शब्दावली और कोश का प्रयोग अवश्य करें। यदि कोई अभिव्यक्ति समझ मे न आये तो विषय के विशेषज्ञ की सहायता लें।
शब्द चयन संबंधी समस्याये:
अनुवाद मे शब्द चयन की समस्या सबसे महत्वपूर्ण होती है। आप विषय को देखकर सीधा सीधा अनुवाद नहीं कर सकते। यदि आप कोश को देखकर सीधा सीधा अनुवाद करते हैं तो कई समस्याये उत्पन्न हो सकती हैं। कोश से हमें उचित और विषय से सम्बंधित शब्द का चयन करना चाहिये अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने मे समय नहीं लगेगा।
मुहावरे और लोकोक्ति सम्बंधी समस्याये:
मुहावरे और लोकोक्तियों के अनुवाद में काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। मुहावरे और लोकोक्तियाँ प्रत्येक भाषा में होती हैं और इनका अर्थ शब्द से नहीं बल्कि उनके प्रयोग से जाना जाता है। एक अनुवादक के लिये यह नितांत आवश्यक है कि वह स्रोत भाषा में प्रयुक्त मुहावरो और लोकोक्तियों का अर्थ समझे फिर उसी प्रकार लक्ष्य भाषा में उसका अनुवाद करे। जैसे- Tom, Dic and Herry को हिंदी मे ‘ऐरा गैरा नत्थू खैरा’ कहना उचित होगा और Herculeon Effort को हिंदी में ‘भगीरथ प्रयास’ कहना अधिक तर्कसंगत होगा क्योंकि भारतीय जनमानस हर्क्यूलिस को नहीं जानता वह भगीरथ को जनता है।
सांस्कृतिक परिवेश:
अनुवाद मे सांस्कृतिक परिवेश व सांस्कृतिक शब्दों का अनुवाद जटिल समस्या होती है। और अनुवाद की समस्याओं मे यही समस्या सबसे जटिल मानी जाती है क्योंकि संस्कृति और सभ्यता हर परिवेश की अलग अलग होती है और एक परिवेश की संस्कृति दूसरे से मिले ये आवश्यक नहीं। अत: अनुवादक को इसका पूरा ध्यान रखना होता है। भारतीय संदर्भ मे बहुत से ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग पाश्चात्य परम्परा में नहीं होता है जैसे- पूडी, सती, अर्चना आदी बहुत से ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग अंग्रेजी में नहीं होता है अंग्रेजी मे आपको इन शब्दों के प्रयोग और अर्थ दोनों नहीं मिलेंगे। ‘इस गिलास का पानी जूठा है’ इस शब्द का अनुवाद लाख कोशिश करने के बाद भी हम जूठा शब्द का सटीक अनुवाद नहीं कर पायेंगे। इसलिये यह जरूरी हो जाता है कि हम ऐसे शब्दों का लगभग सटीक अर्थ तक पहुँचने की कोशिश करें अथवा इसका लिप्यांतरण कर देना चाहिये और कोष्ठक में टिप्पणी द्वारा शब्द की अभिव्यक्ति कर देना चाहिये। भारतीय सामाजिक परिवेश में नाते-रिश्ते, परंपरा, त्योहार आदि से संबंधित शब्दावली प्रचलित है जो अन्य समाज मे नहीं है। ऐसे शब्द अन्य भाषा में नहीं होते हैं अत: इन शब्दों का अनुवाद की बजाय लिप्यांतरण करना अधिक उचित होगा और कोष्ठक में टिप्पणी दे कर अभिव्यक्त कर देना चाहिये।
शब्द शक्तियाँ व लक्षणामूलक प्रयोग:
अनुवाद की एक मुख्य समस्या यह भी होती है कि कभी कभी शब्दों का अर्थ सीधा नहीं होता है बल्कि उनके लक्षणा या व्यंजना मूलक अर्थ होते हैं कहीं कहीं पर व्यंग्य भी होते हैं। इन व्यंग्यों का अनुवाद मुश्किल होता है। ऐसे में शब्द में भाव को समझ कर अनुवाद कर दिया जाता है।
साहित्यिक विधाओं के अनुवाद की समस्या:
साहित्य को समाज का दर्पण माना जाता है और साहित्य, भावना की व्यवस्थित अभिव्यक्ति होती है। अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिये साहित्यकार जिन साधनों का प्रयोग करते हैं, वे साहित्य की विधाये कहलाती हैं जैसे- कविता, कहानी, निबंध, उपन्यास, नाटक आदि। साहित्य के अनुवाद मे सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि साहित्य भाव प्रधान होता है। अत: इसका अनुवाद करते समय स्रोत भाषा के कथानक में वर्णित रम्यता को उसी रम्यता से सम्प्रेषित करना सबसे बड़ी समस्या होती है। हिंदी में अलंकार, समास, संधि आदि का अनुवाद अंग्रेजी मे बहुत मुश्किल होता है। इसी कारण साहित्य का अनुवाद सबसे मुश्किल माना जाता है। साहित्यिक अनुवाद हू-ब-हू न होकर रूपांतरण शैली में होना चाहिये। पात्रों के नाम भी देश-काल कई अनुरूप बदल देने चाहिये।
पौराणिक प्रतीक:
अनुवाद की एक समस्या भी होती है कि पौराणिक या दंत कथाओं आदि के शब्दों को दूसरी भाषा में कैसे व्यक्त किया जाये जैसे- भीष्म प्रतिज्ञा, घर का भेदी, दशानन आदि के पीछे जो तथ्य और प्रतीकात्मकता छिपी होती है उसे अनुवाद के द्वारा व्यक्त करना बेहद मुश्किल कार्य है। इस तरह का अनुवाद प्रतीक की व्याख्या करके अनुवाद करना चाहिये।
तकनीकि एवं वैज्ञानिक अनुवाद की समस्या:
इस तरह का अनुवाद स्वयं में एक चुनौती होता है क्योंकि इस तरह के अनुवाद के लिये अनुवादक को विषय का गूढ़तम ज्ञान होना चाहिये जिससे वह तकनीकि संकल्पनाओं की अभिव्यक्ति सही तरीके से कर सके। ये तकनीकि शब्द सुनने में भले ही आसान लगते हों किंतु ये उतने आसान नहीं हैं ताप, ऊष्मा, नाद जैसे छोटे-छोटे शब्दों का अनुवाद करने के लिये भी गहन अध्ययन करना पड़ता है। वैसे तो यह हमेशा से ही कहा जाता है कि अनुवाद करते समय न कुछ जोड़ा जाये और न कुछ छोड़ा जाये किंतु तकनीकि और वैज्ञानिक अनुवाद करते समय अनुवादक को यह विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिये कि इसमें न कुछ जोड़ा जाये और न कुछ छोड़ा जाये। इस तरह का अनुवाद करने का सर्वोत्तम तरीका यह है कि इससे अनुवाद आकर्षक भले ही न हो पर सही होना चाहिये।
प्रशासनिक एवं विधिक अनुवाद की समस्या:
प्रशासन और विधि के अनुवाद मे सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि विधि में बहुत से शब्द उर्दू के होते हैं जैसे गिरफ्तार, कटघरा आदि ऐसे बहुत से शब्द हैं जिनका हिंदी में समानार्थी शब्द नहीं है। इस तरह के अनुवाद की प्रमुख समस्या है केवल उतना ही संदेश लक्ष्य भाषा में जाये जितना स्रोत भाषा में दिया गया है। एक उच्च पदस्थ हिंदी अधिकारी ने अनुवाद करते समय Scavenger के स्थान पर भंगी शब्द का प्रयोग कर दिया, अर्थ और अभिव्यक्ति के संदर्भ में यह अनुवाद ठीक था किंतु कुछ अनुसूचित जाति संघ ने उस अनुवाद करने वाले अधिकारी पर उनकी भावना को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दायर कर दिया। बेचारा अधिकारी एक छोटी सी लापरवाही के लिये कई वर्ष अदालत के चक्कर लगाता रहा। अंत में उसे लिखित माफी माँग कर राजीनामा हुआ और इस राजीनामे के लिये उसे अच्छी खासी रकम चुकानी पड़ी। मेरे विचार से यह उदाहरण काफी होगा यह समझाने के लिये कि प्रशासनिक या विधिक अनुवाद करते समय कितनी सावधानी बरतने की जरूरत है।
विज्ञापनों के अनुवाद की समस्या:
एक ओर जहां तकनीकि शब्दों का अनुवाद शब्द के आधार पर किया जाता है तो वहीं दूसरी ओर विज्ञापन का अनुवाद प्राय: शब्द के हटकर करना होता है। पर्याय में कौन सा शब्द अधिक सटीक है यह छांटना ही अनुवादक की समस्या है। विडम्बना यह है कि अंग्रेजी में अथवा मूल भाषा में विज्ञापन तैयार करने वाले कापी राइटर को हजारों रुपये बतौर पारिश्रमिक दिया जाता है किंतु उसका अनुवाद करने वाले को नाम मात्र का पारिश्रमिक दिया जाता है इसका कारण यह है कि अनुवाद करने के लिये शब्द कम होते हैं। और यह भी विडम्बना ही है कि कम शब्दों का अनुवाद ही सबसे जटिल होता है।
अनुवाद में आने वाली समस्याओं का निवारण
हिंदी अनुवाद के विकास में बाधक कुछ निम्न समस्याओं और सुझावों पर यदि विचार किया जाये तो सम्भवत: अनुवाद विश्वसनीय होगा। अनुवादकों को और प्रशिक्षित करने के लिये और अनुवाद कर्म के प्रति अनुराग पैदा करने के लिये देश में समय समय पर वार्ता और संगोष्ठियाँ आयोजित करने की आवश्यकता है। और दूसरी बात यह कि विदेशी कृतियों का अनुवाद करते समय कठिन शब्दों का अनुवाद करने से बचना चाहिये। ज्यादा से ज्यादा स्थानीय और देशज शब्दों का प्रयोग करना चाहिये तो इसे उत्तम माना जाता है। ऐसे अनुवाद के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती है।
हिंदी भाषा को देखकर लोग अक्सर कहते हैं कि हिंदी सबसे मुश्किल भाषा है क्योंकि हिंदी में बहुत ही जटिल शब्द होते हैं जैसे- निष्णात, चलचित्र आदि। किंतु वो लोग ये नहीं कहते कि Charecterstics जैसे मुश्किल शब्द तो अंग्रेजी में भी होते हैं। वो ऐस सिर्फ इसलिये कहते हैं कि वो हिंदी के धरातल से बहूत दूर होते जा रहे हैं और अंग्रेजी की अंग्रेजियत में खोते जा रहे हैं। वे अपने आप को अंग्रेजीयत में लपेटकर वे स्वयं को बहुत अच्छा और हिंदी भाषी व्यक्ति को नीच और अनपढ़ मानते हैं। ऐसे लोगों को अनुवाद कर्म नहीं करना चाहिये क्योंकि वे उन शब्दों का सटीक हिंदी अनुवाद नहीं कर सकते।
आजकल के समय में लोग अनुवाद के डिप्लोमा और सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम की संस्थाये और दुकानें खोल कर बैठे हैं। ऐसी संस्थाये अनुवाद का प्रमाण-पत्र तो प्रदान कर देती हैं लेकिन अनुवाद की कला और योग्यता नहीं सिखा पाते। जिसका परिणाम यह होता है कि एक कम प्रशिक्षित व्यक्ति अनुवाद करता है और अनुवाद सही नहीं होता है अर्थ का अनर्थ हो जाता है और कहा यह जाता है कि Translation is a sin. लेकिन यह कथन सिर्फ उन्हीं अनुवादकों के लिये है जो वास्तव में अनुवादक नहीं हैं। श्रेष्ठ अनुवाद करने के लिये ऐसी संस्थाओं को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी तभी अनुवाद त्रुटि रहित होगा।