अनुवाद की भारतीय परम्परा के आधार पर समझे तो वर्तमान युग मे ‘अनुवाद’ कई अर्थों मे प्रयुक्त होता है। जैसे सामान्य अनुवाद, व्याख्या अनुवाद, पूर्वकथित बात का अनुवाद, टीका टिप्पणी का अनुवाद, विवरण, भाषिक अंतरण आदि। अनुवाद का आदि या पूर्व रूप–भाष्य तथा टीका है। निर्वचन-किसी शब्द का एक धातु अथवा अनेक धातुओं के साथ सम्बन्ध स्थापित करके उसका अर्थ निर्धारण करना निर्वचन कहलाता है। वेद के मंत्रो का अर्थ स्पष्ट करने के लिये ब्राम्हण ग्रंथो तथा आरण्यको मे कई स्थलों पर इस प्रक्रिया का प्रयोग किया गया है।
- ब्राम्हण ग्रंथ भाष्य रूप है।
- आरण्यक टीका रूप है।
- यास्क कृत निरुक्त निर्वचन रूप है।
भाषिक अंतरण की दॄष्टि से हकीम बुजोई द्वारा छठी शताब्दी मे किया गया पंचतंत्र का अनुवाद सम्भवत: पहला अनुवाद है। वैदिक साहित्य का अनुवाद वैदिक साहित्य का भी कई भाषाओं मे अनुवाद किया गया है। वेदों और वेदांगो का भी अनुवाद किया गया है। वैदिक साहित्य मुख्यत: संस्कृत भाषा मे लिखा जाता था और संस्कृत से उसका अनुवाद हिंदी मे भी किया गया है।
- ऋग्वेद का लैटिन भाषा मे अनुवाद
- शतपथ एवं एतरेय ब्राम्हण ग्रंथों का अंग्रेजी भाषा मे अनुवाद
- तैतरीयोपनिषद एवं कठोपनिषद् का अंग्रेजी मे अनुवाद
- धर्मसूत्रो की अंग्रेजी मे व्याख्या
इस युग मे मुख्य रूप से दो बातों पर विशेष ध्यान दिया गया है-
- इस युग मे शब्दानुवाद पर बल दिया गया था।
- शब्दों को ज्यों का त्यों स्वीकार किया गया था।
रामायण का अंग्रेजी मे पद्यानुवाद और गद्यानुवाद किया गया और गीताप्रेस द्वारा अंग्रेजी मे प्रकाशित किया गया। महाभारत का भी विभिन्न भाषाओं मे अनुवाद किया गया। श्री मद्भगवत् गीता का विशेष रूप से अनुवाद किया गया। श्री मद्भगवत् गीता का अनुवाद करने के लिये अनुवादक नियुक्त किये जाते थे। पुराणों का भी अंग्रेजी अनुवाद किया गया। रामायण के अनुवाद के समय की दो विशेष बातें थी–
- टीका-टिप्पणी की परम्परा का प्रारम्भ
- भावानुवाद का आरम्भ
रामायण के अनुवाद के समय टीका-टिप्पणी के अनुवाद की परम्परा का प्रारम्भ हुआ उससे पहले हमें टीका-टिप्पणी के अनुवाद की परम्परा नहीँ दिखायी देती है और इसी समय ही भावानुवाद का आरम्भ शुरु होता है।
अनुवाद की भारतीय परम्परा में संस्कृत के महाकाव्यों का अनुवाद:
कालिदास द्वारा संस्कृत भाषा मे रचित महाकाव्य अभिज्ञान शाकुंतलम का कई विद्वानो ने कई भाषाओ मे अनुवाद किया। अभिज्ञान शाकुंतलम का हिंदी अनुवाद राजा लक्ष्मण सिंह और महादेवी वर्मा ने किया। उर्दू मे विशेश्वर प्रसाद मुनव्वर ने किया। एम.एस. विलियम्स ने इसका अंग्रेजी मे अनुवाद किया। संस्कृत के कई अन्य ग्रंथों के अनुवाद भी हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे होते रहे हैं। गोरखपंथो की भी कई पुस्तकों का हिंदी अनुवाद किया है।
हिंदी के अन्य महाकाव्यों का कई भाषाओं मे अनुवाद किया गया जैसे– रामचरित मानस, सूरसागर, रासपंचाध्यायी, रामचन्द्रिका आदि का अनेक भाषाओं मे अनुवाद किया गया। संस्कृत के कई ग्रंथों का सारानुवाद और भावानुवाद किया गया। 19वीं शताब्दी मे अनुवाद का कार्य भाषांतरण के साथ-साथ भाव प्रसार के रूप मे भी सामने आया। उमर खय्याम की रूबाइयो का अनुवाद अंग्रेजी मे फिट्जेराल्ड ने किया और फिट्जेराल्ड के अनुवाद को मूल मानकर हरिवंश राय बच्चन ने मधुशाला नाम से हिंदी मे अनुवाद किया। हिंदी के कई अन्य कवियों जैसे- पंत, प्रसाद, मैथिली शरण गुप्त आदि ने फिट्जेराल्ड की रचना का हिंदी अनुवाद किया। आज अनुवाद साहित्य के संरक्षण एवं प्रसार के रूप मे सामने आ रहा है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य मे अनुवाद का प्रारम्भ भाष्य टीकाओं से हुआ था। हिंदी की अनुवाद परम्परा, हिंदी गद्य के विकास से जुड़ी है। 18वीं शती मे राम प्रसाद निरंजनी ने “भाषा योगवशिष्ठ” के रूप मे किया। इस विकास क्रम को हम निम्नलिखित क्रम मे देख सकते हैं।
अनुवाद की भारतीय परम्परा का प्रारम्भिक दौर:
हिंदी अनुवाद के विकास मे अंग्रेजी पादरियों का विशेष योगदान रहा। विलियम केरे ने न्यू टेस्टामेंट का हिंदी मे अनुवाद प्रकाशित कराया। आगरा मे एक स्कूल बुक ऑफ सोसाइटी खोली गयी जहाँ 1894 मे इंग्लैंड के इतिहास का तथा प्राचीन इतिहास का कथासार के नाम से अनुवाद किया। इसी दौर मे राजा राम मोहन राय ने भाष्य के वेदांग सूत्रो का हिंदी अनुवाद प्रकाशित कराया। हितोपदेश और राजा लक्ष्मण सिंघ के कालिदास के नाटक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ के अनुवाद हुए।
ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजी को प्रशासन और शिक्षा की भाषा के रूप में स्थापित किया गया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय साहित्य, कानून और धर्म के ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ। इसी तरह, अंग्रेजी के साहित्य और विचारधाराओं का भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी जैसे विचारकों ने पश्चिमी साहित्य का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करके भारतीय समाज को जागरूक किया। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में भारतीय पुनर्जागरण के समय भी अनुवाद की परंपरा का व्यापक विकास हुआ। इस काल में भारतीय भाषाओं में पश्चिमी विज्ञान, दर्शन और साहित्य का अनुवाद हुआ। कई भारतीय विद्वानों ने यूरोपीय साहित्य और दर्शन को भारतीय संदर्भ में प्रस्तुत करने के लिए अनुवाद का सहारा लिया। इसने भारतीय समाज को पश्चिमी विचारधारा और आधुनिकता से परिचित कराया।
भारतेंदु युग:
भारतेंदु युग मे उपन्यास, नाटक, निबंध रचना के साथ साथ इन विधाओं के अनुवाद भी हुए। इन अनुवादो मे अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत, मराठी, भाषाओं के नाटकों के अनुवाद विशेष उल्लेखनीय हैं। भारतेंदु ने स्वयं के हरिश्चंद्र नाटक और शेक्ससपियर के Marchent of Venis नाटक का अनुवाद किया। श्रीनिवास दास, तोताराम, बाबू रामकृष्ण वर्मा आदि ने भी कई अनुवाद किये।
द्विवेदी युग:
पिछले युग की तरह द्विवेदी युग मे भी अनुवाद जारी रहे । गोपीनाथ पुरोहित ने शेक्सपियर के ‘रोमियो जुलियेट’ का ‘प्रेमलीला’ नाम से अनुवाद किया। पं. मथुरा प्रसाद चौधरी ने शेक्सपियर के नाटक ‘मैकबेथ’ और ‘हेमलेट’ का क्रमश: ‘साहसेंद्र साहस’ और ‘जयंत’ नाम से अनुवाद किया। अनेक बंगला लेखकों के उपन्यास के अनुवाद हुए।
श्रीधर पाठक ने अंग्रेजी साहित्य की कृतियों का अनुवाद किया। उन्होंने “Goldsmith“ के Traveller, Dessert Village तथा Hermit का क्रमश: श्रांत पथिक, उजड़ ग्राम तथा एकांतवासी योगी शीर्षक से अनुवाद किये। यह अनुवाद सुंदर और परिष्कृत मालूम होते हैं। मैथिली शरण गुप्त, हरिवंशराय बच्चन ने भी बहुत से अनुवाद किये हैं। वर्तमान युग मे अनुवादो की भरमार है। बच्चन ने फिट्जेराल्ड की रचना का मधुशाला नाम से हिंदी अनुवाद किया है।
स्वतंत्रता आंदोलन में अनुवाद की भूमिका
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अनुवाद की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। अनुवाद ने आंदोलन के विचारों को व्यापक जनसमुदाय तक पहुँचाने में मदद की, जिससे स्वतंत्रता की भावना देश के विभिन्न हिस्सों और भाषाई समूहों में फैल सकी।
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राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रसार: महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, जवाहरलाल नेहरू, और अन्य नेताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए अनुवाद का सहारा लिया। महात्मा गांधी के अंग्रेजी में लिखे गए लेख और भाषणों को विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवादित किया गया, जिससे उनके विचार देशभर में फैल सके। उनकी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ को भी विभिन्न भाषाओं में अनुवादित किया गया, ताकि विभिन्न भाषाई समुदायों तक स्वतंत्रता के विचार और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति विरोध की भावना पहुँच सके।
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साहित्य और पत्रकारिता में अनुवाद: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पत्रिकाओं और समाचार पत्रों ने भी अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बिपिन चंद्र पाल और गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे संपादकों ने अपने लेख और भाषणों का अनुवाद करके राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा दिया। इन अनुवादों के माध्यम से एक प्रांत के विचार और घटनाएं दूसरे प्रांतों में फैलीं। इससे पूरे देश में एक एकजुट राष्ट्रीय आंदोलन को आकार मिला। विभिन्न भाषाओं में छपने वाले समाचार पत्र जैसे अमृत बाज़ार पत्रिका, केसरी, और यंग इंडिया ने अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं के बीच विचारों का पुल बनाने में अनुवाद की भूमिका निभाई।
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अंतरराष्ट्रीय विचारधारा का अनुवाद: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय नेताओं ने विदेशी विचारकों और आंदोलनों से प्रेरणा ली। महात्मा गांधी ने हेनरी डेविड थोरो के सविनय अवज्ञा के विचार से प्रेरणा ली, जिसे भारतीय भाषाओं में अनुवादित कर प्रस्तुत किया गया। इसी तरह, रूस की समाजवादी क्रांति और फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धांतों का अनुवाद भी भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों तक पहुँचाया गया। इसने भारतीय क्रांतिकारियों और समाजवादियों को अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने में मदद की।
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संविधान निर्माण और अनुवाद: स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के निर्माण में भी अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही। संविधान को अंग्रेजी में तैयार किया गया, लेकिन इसे देश की विभिन्न भाषाओं में अनुवादित करके जनता तक पहुँचाया गया, ताकि सभी नागरिकों को उनके अधिकार और कर्तव्यों की जानकारी हो सके। भारतीय संविधान का अनुवाद भारतीय लोकतंत्र को समझने और लागू करने में एक महत्वपूर्ण कदम था।
स्वतंत्रता आंदोलन में अनुवाद का सबसे महत्वपूर्ण योगदान था—देश के कोने-कोने में राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता की भावना का प्रसार। चूंकि भारत बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है, अनुवाद के बिना यह संभव नहीं होता कि देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोग एक साझा उद्देश्य और संघर्ष के लिए एकजुट हो सकें। अनुवाद के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विचार और नीतियां बंगाल से लेकर पंजाब, महाराष्ट्र से तमिलनाडु, और गुजरात से असम तक फैलीं।
भारत की बहुभाषी संरचना के कारण अनुवाद सदैव एक अनिवार्य आवश्यकता रही है। अनुवाद के माध्यम से ही विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संवाद संभव हुआ है। भारतीय परंपरा में अनुवाद न केवल एक भाषाई प्रक्रिया है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक, धार्मिक और बौद्धिक संवाद का साधन भी है। अनुवाद के माध्यम से विभिन्न भाषाई समूहों के लोग एक-दूसरे की संस्कृति, साहित्य और ज्ञान से परिचित होते रहे हैं। यह परंपरा न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारतीय संस्कृति और साहित्य को प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम रही है।
निष्कर्ष
अनुवाद की भारतीय परंपरा एक दीर्घकालिक और समृद्ध परंपरा है, जिसने भारतीय समाज में ज्ञान, विचार और संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्राचीन समय से लेकर आधुनिक काल तक, अनुवाद भारतीय सभ्यता का एक अभिन्न हिस्सा रहा है, जो देश के विभिन्न भाषाई और सांस्कृतिक समूहों को जोड़ने में सहायक रहा है।