नागार्जुन हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील कवि हैं, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को बड़ी सरलता से व्यक्त करने के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविता “अकाल और उसके बाद” एक ऐसा साहित्यिक दस्तावेज है, जो न केवल 1943 के बंगाल अकाल का चित्रण करता है, बल्कि इसके माध्यम से वे भूख, पीड़ा और संघर्ष के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। यह कविता सामान्य जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं और प्रतीकों के माध्यम से गहरे सामाजिक और मानविक सवालों को उठाती है। इसमें अकाल की विभीषिका और उसके बाद की पुनर्प्राप्ति का सजीव चित्रण किया गया है। कविता हमें यह समझाती है कि विपत्ति का समय कितना भी कठिन क्यों न हो, जीवन की लय एक दिन फिर लौट ही आती है। यह कविता एक साधारण गाँव के घर की स्थिति को व्यक्त करते हुए पूरे समाज और मानव जाति के संघर्ष को प्रतिबिंबित करती है। अब अकाल और उसके बाद कविता की व्याख्या को देखते हैं :
नागार्जुन की अकाल और उसके बाद कविता की व्याख्या :
पहला भाग: अकाल की स्थिति
“कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास”
कविता की शुरुआत बहुत ही साधारण लेकिन मार्मिक दृश्य से होती है। चूल्हे के “रोने” और चक्की के “उदास” होने से कवि यह बताना चाहते हैं कि घर में कई दिनों तक खाना नहीं बना। चूल्हा और चक्की घर के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, और जब ये निष्क्रिय हो जाते हैं, तो यह जीवन के ठहराव का प्रतीक बन जाता है।
“कानी कुतिया” का जिक्र कविता की जमीनी वास्तविकता और गहरी संवेदना को दर्शाता है। यहाँ कुतिया सिर्फ भूखी नहीं है, वह घरवालों की ही तरह अकाल की त्रासदी झेल रही है। कानी (अंधी) कुतिया का उपयोग गरीबी और अभाव की स्थिति को और गहराई से दिखाने के लिए किया गया है। यह उस निम्न वर्ग का प्रतीक है जो संकट के समय सबसे ज्यादा प्रभावित होता है।
“कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त”
यहाँ दीवार पर छिपकलियों की गश्त और चूहों की शिकस्त का चित्रण किया गया है। आमतौर पर छिपकलियाँ कीड़े-मकोड़े खाती हैं, लेकिन अकाल के समय घर में कीड़े-मकोड़े तक नहीं मिलते, और यह स्थिति छिपकलियों के अस्तित्व को भी चुनौती देती है। इसी प्रकार, चूहों की हालत भी खराब है क्योंकि अनाज नहीं है। यहाँ छिपकलियों और चूहों को लेकर एक व्यापक सन्देश दिया गया है कि अकाल केवल मनुष्यों को ही नहीं, बल्कि छोटे-बड़े सभी जीवों को प्रभावित करता है।
दूसरा भाग: अकाल के बाद की स्थिति
“दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद,
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद”
इस भाग में, अकाल के समाप्त होने और जीवन के सामान्य होने का वर्णन किया गया है। जब घर में अनाज के दाने आते हैं, तो चूल्हा जलता है, और आँगन से धुआँ उठता है। यह प्रतीक है कि अब घर में भोजन बनने लगा है, और जीवन फिर से गतिशील हो रहा है। यह सामान्य जीवन के पुनः लौटने की शुरुआत का प्रतीक है।
“चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद,
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद”
अकाल समाप्त होते ही जीवन में एक नई ऊर्जा और खुशी का संचार होता है। घर के सभी लोगों की आँखों में उम्मीद और खुशी लौट आती है। कौए का पंख खुजलाना यह दर्शाता है कि जैसे ही भोजन मिलता है, चारों ओर एक नई उम्मीद और हलचल शुरू हो जाती है। कौए का पंख खुजलाना भोजन की प्राप्ति का प्रतीक है, जो अकाल के समय उड़ चला था, लेकिन अब पुनः लौट आया है।
अकाल और उसके बाद कविता का निष्कर्ष:
नागार्जुन की “अकाल और उसके बाद” कविता न केवल एक ऐतिहासिक अकाल का दस्तावेज है, बल्कि यह भूख, पीड़ा, और जीवन के संघर्ष की सार्वभौमिकता को भी उजागर करती है। कविता हमें यह सिखाती है कि संकट चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, जीवन एक दिन पुनः अपने पुराने रूप में लौट आता है। जैसे अकाल के बाद अनाज आ गया और चूल्हा फिर से जलने लगा, वैसे ही मानव जीवन की कठिनाइयाँ भी एक दिन समाप्त होती हैं।
यह कविता हमें यह भी बताती है कि समाज के निम्न और वंचित वर्ग को अकाल जैसी आपदाओं का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ता है। कानी कुतिया, चूहे, और छिपकली जैसे प्रतीकों का उपयोग कर नागार्जुन ने यह दिखाने की कोशिश की है कि कैसे हर एक प्राणी इस त्रासदी से प्रभावित होता है। कविता में अकाल से उपजी पीड़ा और उसके बाद की खुशी को एक ही भावभूमि पर प्रस्तुत किया गया है, जो इसे अत्यंत प्रभावशाली और मार्मिक बनाता है।
यह कविता उस हर समाज के लिए प्रासंगिक है जहाँ प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं। उदाहरण के रूप में, 1943 के बंगाल अकाल के दौरान लाखों लोग भुखमरी से मारे गए। उस समय न केवल मनुष्य, बल्कि जानवर और पर्यावरण भी प्रभावित हुए। इस कविता के माध्यम से नागार्जुन ने हमें यह बताया कि जीवन की भोजन जैसी मूलभूत आवश्यकताएँ कितनी महत्वपूर्ण हैं और जब वह उपलब्ध नहीं होतीं, तो पूरा जीवन ठहर सा जाता है। लेकिन जब अनाज मिलता है, तो जीवन की गति फिर से लौट आती है। इस प्रकार, “अकाल और उसके बाद” सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि मानव जीवन के संघर्ष और पुनरुत्थान का प्रतीक है।