नागार्जुन की अकाल और उसके बाद कविता की मूल संवेदना भूख, विपत्ति, और मानवीय संघर्ष के बीच पुनर्जीवन की अनिवार्यता को गहराई से उजागर करती है। यह कविता उस भीषण त्रासदी का प्रतीक है, जब जीवन ठहर सा जाता है और मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए निरंतर संघर्ष करता है। अकाल की विभीषिका केवल भौतिक रूप से नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से भी मानवीय जीवन को प्रभावित करती है। लेकिन इस कविता का केंद्रीय भाव यह है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, जीवन अपनी धारा में लौटता है और पुनः आशा की किरणें फूटती हैं।
1943 के बंगाल अकाल ने भारत के इतिहास में गहरी छाप छोड़ी थी। इस अकाल के कारण लाखों लोग भूख से मर गए, और समाज का हर वर्ग किसी न किसी रूप में इस विपत्ति का शिकार हुआ। उस समय भोजन की कमी ने पूरे बंगाल को तहस-नहस कर दिया था। परिवारों के परिवार भूख और कुपोषण से दम तोड़ रहे थे, और घर-घर में चूल्हे ठंडे पड़ गए थे। यह स्थिति नागार्जुन की कविता में बखूबी परिलक्षित होती है:
“कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास”
यह पंक्तियाँ 1943 के अकाल की भयावहता को पूरी तरह से चित्रित करती हैं। घर के चूल्हे का “रोना” और चक्की का “उदास” होना यह संकेत देता है कि अकाल के दौरान भोजन की इतनी कमी थी कि लोग खाना पकाने की स्थिति में भी नहीं थे। यह त्रासदी केवल भूख तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसने परिवारों और समाज के रिश्तों को भी प्रभावित किया।
अकाल के समय की यह पीड़ा केवल मनुष्य तक सीमित नहीं थी, बल्कि अन्य जीव-जंतु भी इस संकट का शिकार हुए थे। नागार्जुन ने इस कविता में घर के वातावरण और जीव-जंतुओं की स्थिति का भी गहरा चित्रण किया है:
“कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त”
छिपकलियाँ और चूहे, जो आमतौर पर भोजन ढूँढने के लिए इधर-उधर घूमते हैं, वे भी इस अकाल के कारण भूख और बेबसी से जूझ रहे थे। यह पंक्तियाँ यह बताती हैं कि अकाल केवल इंसान को नहीं, बल्कि हर जीव को प्रभावित करता है।
पुनर्जीवन और आशा की संवेदना
हालांकि कविता का पहला भाग अकाल की त्रासदी को गहराई से व्यक्त करता है, लेकिन इसका दूसरा भाग जीवन में पुनः आशा और सुधार की ओर संकेत करता है। जब अकाल समाप्त होता है और घर में अनाज आता है, तो जीवन फिर से गति पकड़ने लगता है:
“दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद”
यह पंक्तियाँ जीवन की वापसी और घर में खुशी की शुरुआत को दर्शाती हैं। चूल्हे से धुआँ उठना और घर के आँगन में हलचल लौट आना यह संकेत है कि अब संकट का समय खत्म हो चुका है और जीवन पुनः सामान्य हो रहा है। इस बदलाव से यह स्पष्ट होता है कि विपत्तियों के बाद भी मानव जीवन में संघर्ष की अंतर्निहित शक्ति होती है, जो उसे पुनर्जीवित करती है।
“चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद”
यह पंक्तियाँ उस खुशी और उत्साह को व्यक्त करती हैं जो अकाल के बाद अन्न के आगमन से उत्पन्न होती है। यहाँ कौए का पंख खुजलाना एक प्रतीक है, जो यह दर्शाता है कि अब जीवन में भोजन की उपलब्धता है और पर्यावरण भी पुनः जागृत हो रहा है।
अकाल और उसके बाद कविता की मूल संवेदना यह है कि चाहे कितनी भी बड़ी विपत्ति क्यों न हो, मानव जीवन में आशा और पुनर्निर्माण की शक्ति सदैव बनी रहती है। 1943 के बंगाल अकाल की त्रासदी ने लाखों लोगों को मृत्यु और भूख की स्थिति में डाल दिया, लेकिन उस समय के बाद भी जीवन ने अपनी लय पाई। यह कविता उस संघर्ष की बात करती है जो विपत्ति के समय मानवता को डगमगाने नहीं देता। जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि कठिनाइयों के बाद भी जीवन फिर से खिल उठता है, और यही संघर्ष और पुनरुत्थान कविता की प्रमुख संवेदना है। नागार्जुन इस कविता के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि चाहे कितना भी बड़ा संकट क्यों न हो, मानवता की जिजीविषा उसे हर बार उठने और जीवन को फिर से जीने के लिए प्रेरित करती है।