नागार्जुन की प्रसिद्ध कविता ‘सिके हुए दो भुट्टे’ का स्रोत “नागार्जुन रचना संचयन“ पुस्तक है, जिसका संपादन प्रख्यात साहित्यकार राजेश जोशी ने किया है। यह कविता सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के बीच के गहरे संबंधों को उजागर करती है और पाठकों को श्रम, जीवन संघर्ष, और साधारण जनजीवन की सच्चाइयों से जोड़ती है। यह रचना साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित 2017 के संस्करण में शामिल है और पुस्तक के पृष्ठ 32 पर उपलब्ध है। साहित्य प्रेमियों के लिए यह कविता नागार्जुन के साहित्यिक योगदान की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
नागार्जुन की कविता ‘सिके हुए दो भुट्टे’
सिके हुए दो भुट्टे सामने आए
तबीयत खिल गई
ताज़ा स्वाद मिला दूधिया दानों का
तबीयत खिल गई
दाँतों की मौजूदगी का सुफल मिला
तबीयत खिल गई
अखिलेश ने अपनी मेहनत से
इन पौधों को उगाया था
वार्ड नंबर दस के पीछे की क्यारियों में
वार्ड नंबर दस के आगे की क्यारियों में
ढाई महीने पहले की अखिलेश की खेती
इन दिनों अब जाने किस-किस को पहुँचा रही है सुख
बीसियों जने आज अखिलेश को दुआ दे रहे हैं
सिके हुए भुट्टों का स्वाद ले रहे हैं
डिस्ट्रिक्ट जेल की चहारदीवारियों के अंदर
इन क्यारियों में अखिलेश अब सब्ज़ियाँ उगाएगा
वह किसी मौसम में इन्हें ख़ाली नहीं रहने देगा
श्रम का अपना सु-फल वो
जाने किस-किस को चखाएगा
वो अपना मन ताश और शतरंज में नहीं लगाएगा
हममें से जो बातूनी और कल्पना-प्रवण हैं
वे भी अखिलेश की फलित मेधा का लोहा मानते हैं—
मन ही मन प्रणत हैं वे अखिलेश की उद्यमशीलता के प्रति
पसीना-पसीना हो जाते हैं तरुण
लगाते-लगाते संपूर्ण क्रांति के नारे
फूल-फूल जाती हैं गर्दनों की नसें…
काश वे भी जेल के पिछवाड़े क्यारियों में
कुछ न कुछ उपजा के चले जाएँ
भले, दूसरे ही उनकी उपज के फल पाएँ!
Disclaimer
All Hindi poems, stories, and novels available on this website are published solely for educational and informational purposes. The copyright of this content belongs to the original authors, publishers, or other rights holders. If you believe any content on this website infringes your copyright, please contact us immediately. We will review the material and, if necessary, promptly remove it from the website.