साहित्यकार
सरहपा
सिद्ध सरहपा, जिन्हें राहुलभद्र और सरोज-वज्र के नाम से भी जाना जाता है, तांत्रिक बौद्ध परंपरा के आदिम सिद्ध माने जाते हैं। वज्रयानी चौरासी सिद्धों में सरहपा का स्थान सबसे प्रमुख और आदिक सिद्ध के रूप में माना जाता है। उनके जीवन और कार्यों ने भारतीय तांत्रिक साधना परंपरा और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदा...
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की प्रमुख कवयित्री, लेखिका और छायावाद की महत्वपूर्ण स्तंभ थीं। उनका जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल, इंदौर और फिर क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज, इलाहाबाद में हुई। उन्होंने संस्कृत में एम.ए. की डिग्री प्रयाग विश्ववि...
भारतेंदु हरिश्चंद्र
भारतेन्दु हरिश्चंद्र (9 सितंबर 1850 - 6 जनवरी 1885) हिंदी साहित्य के पितामह और आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक माने जाते हैं। अपने अल्प जीवन में उन्होंने साहित्य, पत्रकारिता, समाज-सुधार और संस्कृति के क्षेत्रों में अभूतपूर्व योगदान दिया, जिसके कारण उनका नाम आज भी हिंदी साहित्य में स्वर्णाक्षरों में अंकि...
प्रेमचंद
प्रेमचंद, जिन्हें मूल रूप से धनपत राय श्रीवास्तव के नाम से जाना जाता था, का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के लमही गाँव में हुआ था। एक साधारण किसान परिवार में जन्मे प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू साहित्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया और उन्हें हिंदी साहित्य के "उपन्यास सम्राट" के रूप में जाना जाता है। ...
घनानंद
घनानंद (1673-1760) रीतिकाल के एक प्रमुख कवि थे, जिन्हें रीतिमुक्त धारा का प्रतिनिधि कवि माना जाता है। उनका जन्म दिल्ली के आसपास हुआ था, लेकिन उनके जन्मस्थान और परिवार के बारे में अधिक स्पष्ट जानकारी नहीं है। घनानंद साहित्य और संगीत दोनों में निपुण थे, और मुगल सम्राट मुहम्मद शाह 'रंगीले' के दरबार में...
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के एक प्रमुख आलोचक, इतिहासकार और विचारक थे, जिनका जन्म 1 अक्टूबर 1884 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगौना गाँव में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा मिर्जापुर में हुई और बाद में उन्होंने प्रयाग की कायस्थ पाठशाला से इंटर की पढ़ाई पूरी की। स्वाध्याय के माध्यम से उन्होंन...