प्रेमचंद, जिन्हें मूल रूप से धनपत राय श्रीवास्तव के नाम से जाना जाता था, का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के लमही गाँव में हुआ था। एक साधारण किसान परिवार में जन्मे प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू साहित्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया और उन्हें हिंदी साहित्य के “उपन्यास सम्राट” के रूप में जाना जाता है। उनके पिता का नाम मुंशी अजायबलाल था, जो डाकघर में नौकरी करते थे, और उनकी माता का नाम आनंदी देवी था।
प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के मदरसे में हुई, और उन्होंने कठिन परिस्थितियों के बावजूद अपनी शिक्षा जारी रखी। पिता के देहांत के बाद, उन्होंने ट्यूशन पढ़ाकर अपने पढ़ाई के खर्चे पूरे किए और दसवीं पास करने के बाद अध्यापक की नौकरी शुरू की। उन्होंने उर्दू में लिखना शुरू किया और अपना साहित्यिक नाम नवाब राय रखा, लेकिन ब्रिटिश सरकार द्वारा उनकी पुस्तक ‘सोज़-ए-वतन’ पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद उन्होंने प्रेमचंद नाम से लिखना शुरू किया।
प्रेमचंद ने 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्र लेखन को अपना करियर बना लिया। उन्होंने ‘हंस’ और ‘जागरण’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया और प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष बने।
प्रेमचंद ने अपने जीवन में कई उपन्यास और कहानियाँ लिखीं, जिनमें से ‘गोदान’, ‘गबन’, ‘सेवासदन’, ‘कर्मभूमि‘ उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। उन्होंने सामाजिक समस्याओं, शोषण, गरीबी और किसानों के जीवन को अपनी रचनाओं में प्रमुखता से उभारा। उनके द्वारा लिखी गई कहानियाँ, जैसे ‘ईदगाह’, ‘पूस की रात’, ‘कफ़न’, ‘दो बैलों की कथा’, आज भी अत्यधिक लोकप्रिय हैं और सामाजिक यथार्थ को बेहद सजीवता से चित्रित करती हैं।
प्रेमचंद का लेखन न केवल हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण माना जाता है, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज में सामाजिक सुधारों के लिए भी एक सशक्त माध्यम के रूप में साहित्य का उपयोग किया। 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच जीवित हैं और वे हिंदी साहित्य में एक अमूल्य धरोहर के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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