कृष्ण चंदर

कृष्ण चंदर (मूल नाम: कृष्ण चन्द्र) का जन्म 23 नवंबर 1914 को राजस्थान के भरतपुर में हुआ था, और उनका निधन 8 मार्च 1977 को हुआ। वे उर्दू के एक महत्वपूर्ण लेखक, अफ़साना निगार, उपन्यासकार और स्क्रिप्ट लेखक थे, जिनकी रचनाओं ने उर्दू साहित्य और प्रगतिशील लेखक आंदोलन पर गहरा प्रभाव डाला। वे एक रचनात्मक और विविधतापूर्ण लेखक थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में रोमांटिक यथार्थवाद, हास्य, व्यंग्य, और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों का बेहतरीन मिश्रण प्रस्तुत किया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

कृष्ण चंदर का बचपन जम्मू और कश्मीर के पुंछ इलाके में गुज़रा, जहाँ उनके पिता गौरी शंकर चोपड़ा मेडिकल अफसर के रूप में काम करते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तहसील महेंद्रगढ़ में प्राप्त की और आगे की पढ़ाई लाहौर के फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज से की, जहाँ वे क्रांतिकारी गतिविधियों में भी सक्रिय रहे। साहित्य के प्रति उनकी रुचि प्रारंभ से ही रही, और उन्होंने अपनी पहली कहानी तब लिखी जब वे स्कूल में थे।

साहित्यिक योगदान

कृष्ण चंदर उर्दू साहित्य के प्रगतिशील लेखक आंदोलन से जुड़े हुए थे, जिसने उन्हें साहित्यिक रूप से और भी समृद्ध बनाया। वे प्रगतिशील लेखक संघ के सदस्य बने और 1938 में कलकत्ता में आयोजित अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन में पंजाब का प्रतिनिधित्व किया।

कृष्ण चंदर ने 500 से अधिक कहानियाँ और दर्जनों उपन्यास लिखे। उनकी कहानियों में आम आदमी के जीवन की कठिनाइयों, समाज में फैली असमानता, और शोषण पर जोर दिया गया है। उनका लेखन सरल, प्रवाहमय और भावनात्मक होता है, जिसमें यथार्थ और कल्पना का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ और उपन्यास जैसे “अन्नदाता”, “मोबी”, “शिकस्त”, और “एक गधे की आत्मकथा” उर्दू साहित्य में क्लासिक मानी जाती हैं।

उनकी रचनाओं में हास्य और व्यंग्य का भी विशेष स्थान था। उनकी भाषा में एक शायराना मिठास और चित्रात्मकता होती थी, जिसने उन्हें अपने समकालीन लेखकों से अलग पहचान दिलाई। अली सरदार जाफरी ने उनके बारे में कहा था कि वे एक “शायर अफ़साना निगार” हैं, जो न केवल कहानियाँ लिखते हैं, बल्कि उनमें कविता का सौंदर्य भी भर देते हैं।

फिल्म और पत्रकारिता

कृष्ण चंदर ने साहित्यिक लेखन के साथ-साथ फिल्मी दुनिया में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने फिल्मी संवाद और पटकथाएँ लिखीं और कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया। उनकी कहानियाँ और उपन्यास फ़िल्मों के लिए प्रेरणा स्रोत बने और उनके लेखन ने हिंदी सिनेमा को भी समृद्ध किया।

प्रमुख रचनाएँ

  • कहानी संग्रह: “ख़्याल”, “नज़्ज़ारे”, “नग़मे की मौत”
  • उपन्यास: “अन्नदाता”, “शिकस्त”, “एक गधे की आत्मकथा”, “मोबी”
  • अन्य रचनाएँ: रेखाचित्र, निबंध, टिप्पणियाँ, रिपोर्ताज

सम्मान और पुरस्कार

कृष्ण चंदर को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्हें 1969 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया और 1966 में उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी नवाजा गया। इसके अलावा, भारतीय डाक विभाग ने 2017 में उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया। हालाँकि उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन उनके लेखन ने उर्दू साहित्य के पाठकों और आलोचकों के बीच उन्हें अमर बना दिया।

निधन

कृष्ण चंदर को 1967, 1969 और 1976 में दिल के दौरे पड़े, लेकिन वे बच गए। 8 मार्च 1977 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद भी उनकी रचनाएँ साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय बनी रहीं और वे उर्दू साहित्य के अमर कथाकारों में गिने जाते हैं।

कृष्ण चंदर का लेखन समाज के हर तबके को छूता है, और उनके अफ़सानों में जीवन के विविध पहलुओं को खूबसूरती से चित्रित किया गया है। वे एक ऐसे लेखक थे, जिन्होंने अपने लेखन में व्यक्तिगत अनुभवों और सामूहिकता को एक साथ जोड़ा, और यही उनके साहित्यिक सफर की सबसे बड़ी उपलब्धि रही।

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